Margin Rule To Change From Today: आज से 100 फीसदी मार्जिन रूल लागू, जानिए- सेबी ने क्यों किया बदलाव?
Margin Rule To Change From Today: शेयर बाजार में इंट्रा डे ट्रेडिंग और फ्यूचर एंड ऑप्शन में ट्रेडिंग करने के लिए आज से 100 फीसदी मार्जिन रूल लागू हो गया है.
Published: September 1, 2021 9:54 AM IST
Margin Rule To Change From Today: सेबी ने 1 सितंबर यानी आज से पीक मार्जिन के नियमों में बदलाव कर दिया है. आज से ट्रेडिंग के लिए 100 फीसदी मार्जिन अपफ्रंट रखने की जरूरत होगी. पहले यह सिर्फ 75 फीसदी था. यानी शेयर खरीदने या बेचने के लिए 75 फीसदी अपफ्रंट मार्जिन की जरूरत थी. आज से इंट्राडे पोजीशन में भी 100 फीसदी मार्जिन की जरूरत होगी.
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जानिए – 100 फीसदी मार्जिन रूल का ट्रेडर्स पर क्या होगा असर?
फ्यूचर एंड ऑप्शन (F&O) में ट्रेडिंग करने वालों को अब मार्जिन के तौर पर ज्यादा फंड रखना होगा. अब पीक मार्जिन के तौर पर 100 फीसदी मार्जिन अपफ्रंट रखना होगा. एक ही दिन में शेयर खरीदकर बेचने वाले यानी इंट्राडे करने वालों को भी 100 फीसदी मार्जिन की जरूरत होगी. पहले 75 फीसदी मार्जिन अपफ्रंट की जरूरत होती थी.
आसान शब्दों में कहें तो अगर कोई ट्रेडर 10 लाख रुपये का निफ्टी कॉन्ट्रैक्ट खरीदना चाहता है तो अब उसे बतौर 20 फीसदी मार्जिन 2 लाख रुपये रखना होगा. लेकिन पहले सिर्फ 1.50 लाख रुपये मार्जिन रखने की जरूरत होती थी.
जानिए- क्या है पीक मार्जिन?
पिछले साल तक कारोबारी सत्र के अंत में मार्जिन वसूला जाता था. उदाहरण के तौर पर अगर आपने कल एक करोड़ रुपये F&O में निवेश किया तो आज के मार्केट सत्र में भी अतिरिक्त 1 करोड़ रुपये का निवेश कर सकते थे. पुराने सिस्टम में एक करोड़ रुपये के अतिरिक्त निवेश पर अलग से कोई मार्जिन नहीं चुकाना पड़ता था. यानी कल के मार्केट सत्र से लेकर आज के मार्केट सत्र के बीच सिर्फ एक करोड़ रुपये के मार्जिन पर आप 2 करोड़ रुपये F&O में निवेश कर सकते थे. लेकिन नए नियम के मुताबिक, आपको अतिरिक्त एक करोड़ रुपये पर भी मार्जिन देना होगा.
सेबी ने पीक मार्जिन सिस्टम पिछले साल लागू किया था. इसे चार चरणों में लागू किया गया है. पहले चरण में अतिरिक्त एक करोड़ रुपये पर 25% मार्जिन वसूला गया. दूसरे चरण में 50 फीसदी, तीसरे चरण में 75 फीसदी और चौथा चरण 1 सितंबर से लागू हो गया. इसमें 100 फीसदी अपफ्रंट मार्जिन चुकाना होगा.
सेबी ने क्यों किया बदलाव?
बाजार के बदलते पहलुओं को देखते हुए सेबी ने ये रिस्क मैनेजमेंट फ्रेमवर्क बनाया है. इसे फ्रेमवर्क को बनाने के लिए सेबी ने रिस्क मैनेजमेंट रिव्यू कमिटी (RMRC) के साथ मशविरा किया था. हालांकि ब्रोकर्स संगठन ANMI इस बदलाव से खुश नहीं है और इसमें कई बदलाव की मांग कर रहे हैं.
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Intraday Trading क्या है? | इंट्राडे ट्रेडिंग में प्रॉफिट कैसे कमा सकते हैं?
दोस्तों आप में से बहुत से लोग स्टॉक मार्केट में शेयर्स को खरीदते और बेचते होंगे मतलब कि ट्रेडिंग का काम करते होंगे ट्रेडिंग कई तरह की होती है इनमे से एक इंट्राडे ट्रेडिंग होती है लेकिन क्या आपको पता है कि इंट्राडे ट्रेडिंग क्या होती है और इंट्राडे ट्रेडिंग कैसे होती है अगर नही, तो आइये आज हम आपको इंट्राडे ट्रेडिंग से रिलेटेड पूरी जानकारी लेते है तो जो कैंडिडेट इंट्राडे ट्रेडिंग के बारे में पूरी जानकारी चाहते है वो हमारे इस आर्टिकल को पूरा जरुर पढ़े.
Table of Contents
Intraday ट्रेडिंग क्या होती है (What is Intraday Trading in Hindi)
जब कोई ट्रेडर शेयर मार्केट से शेयर्स को एक ही दिन में कम दाम में खरीद कर उसी दिन उसे ज्यादा दामों में बेच देता है तो उसे इंट्राडे ट्रेडिंग कहते है. मतलब कि शेयर मार्किट में एक ही दिन के अन्दर शेयर को कम दाम पर खरीद कर ज्यादा दाम पे बेच कर प्रॉफिट लेने को इंट्रा डे ट्रेडिंग कहा जाता है.
इंट्राडे ट्रेडिंग करने के लिए आपको डिमैट एकाउंट की जरूरत नही पड़ती है इसके लिए सिर्फ आपको एक ट्रेडिंग अकाउंट खुलवाना होता है.
इंट्राडे ट्रेडिंग कैसे करे?
इंट्राडे ट्रेडिंग करने के लिए आपको Trading Account की जरुरत होती है क्योंकि आप बिना ट्रेडिंग अकाउंट के ट्रेडिंग नहीं कर सकते. इंट्राडे ट्रेडिंग करने के लिए आपको डिमैट अकाउंट की जरूरत नही होती है क्युकी इसमें आपको शेयर को होल्ड करके रखना नही होता है उसी दिन शेयर्स को खरीदना और बेचना होता है, जब आपको शेयर्स को होल्ड इंट्रा डे ट्रेडिंग नियम इंट्रा डे ट्रेडिंग नियम कर रखना होता है तब डिमैट अकाउंट की जरूरत होती है.
इंट्राडे ट्रेडिंग में प्रॉफिट कैसे कमा सकते हैं?
इसका सबसे अच्छा उदाहरण आप 1 अगस्त के बिज़नस में देख सकते हैं आज एयरटेल में निवेश करने वाले काफी आगे जा चुके है और शेयर में 5 फीसदी से ज्यादा की ग्रोथ मिली है, दरअसल आज के टाइम में एजीआर इश्यू पर निवेशकों की नजर थी. सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर बकाया चुकाने के लिए टेलिकॉम कंपनियों को 10 साल का समय दिया है, जिसके बाद एयरटेल में 5 फीसदी की तेजी आई है और ऐसे ट्रेड का ध्यान रखना इंट्राडे या फिर डे ट्रेडर्स के लिए काफी जरूरी होता है.
एक्सपर्ट का मानना ये है कि शेयर मार्केट का ज्यादातर बिज़नस इंट्राडे ट्रेडिंग का ही होता है लेकिन फिर भी सावधानी के साथ ही इस बिज़नस करना बहत जरूरी है शेयर्स को खरीदने से पहले आपको मार्केट के ट्रेंड के बारे में जानना जरूरी होता है आपको मार्केट के ट्रेंड के खिलाफ न जाएं क्युकी ऐसा करने से आपको ट्रेडिंग बिज़नस में नुकसान हो सकता है. शेयर खरीदने के पहले शेयर्स का मूल्य तय कर लेना है और पूरी जानकारी लेने के बाद ही शेयर्स को खरीदना है.
इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए कितने पैसों की जरूरत पड़ती है?
अगर आप इंट्राडे ट्रेडिंग करना चाहते है तो इसमें आप किसी शेयर में जितनी भी रकम चाहे लगा सकते है शेयर मार्केट का एक रूल होता है कि इसमें जिस दिन शेयर खरीदा जाता है उसी दिन पूरा पैसा नहीं देना होता है. नियम के अनुसार जिस दिन शेयर खरीदा जाता है उसके 2 ट्रेडिंग दिनों के बाद आपको पूरा पैसा देना होता है स्टार्टिंग में आपको शेयर के मूल्य का 30 फीसदी रकम का निवेश करना होता है.
इंट्राडे ट्रेडिंग करने के कुछ महत्वपूर्ण पॉइंट्स –
एक सफल इंट्राडे ट्रेडर बनने के लिए आपको इन कुछ जरुरी बातो को ध्यान रखना है-
- इंट्राडे ट्रेडिंग में आपको खरीदे गये शेयर्स को कभी होल्ड करके नही रखना है.
- जब भी आप शेयर्स को खरीदे तो कभी भी एक ही शेयर पर बार बार ट्रेडिंग न करे .
- अगर किसी दिन आपको ट्रेडिंग में मुनाफा ज्यादा हो तो उस दिन को लकी डे समझ कर ज्यादा ट्रेडिंग नही करना है.
- कभी भी आपको ट्रेडिंग में एक साथ ज्यादा पैसा नही लगाना है.
- अगर आप ट्रेडिंग का काम करते है तो कभी भी किसी भी व्यक्ति की सलाह लेकर ट्रेडिंग न करे अपना खुद का रिसर्च करने के बाद ही ट्रेडिंग करे.
- अगर कोई कंपनी बंद है तो उसके शेयर्स न खरीदे, मतलब कि बंद हुई कंपनी के शेयर्स आपको नही खरीदना है.
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आज आपने क्या सीखा?
हमे उम्मीद है कि हमारा ये (Intraday Trading kya hai) आर्टिकल आपको काफी पसन्द आया होगा और आपके लिए काफी यूजफुल भी होगा क्युकी इसमे हमने आपको इंट्राडे ट्रेडिंग से रिलेटेड पूरी जानकारी दी है.
हमारी ये (Intraday Trading kya hai) जानकारी कैसी लगी कमेंट करके जरुर बताइयेगा और जो लोग इंट्राडे ट्रेडिंग करना चाहते है उनके साथ भी जरुर शेयर कीजियेगा.
इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए स्टॉप लॉस कैसे सेट करें? | Stop Loss Kaise Lagaye | How to set stop loss?
How to set stop Loss: स्टॉप लॉस एक ऐसा मेथड है जो किसी भी स्टॉक से होने वाले नुकसान को कम करता है। इसका उपयोग इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए किया जाता है। लेकिन डे ट्रेडिंग के लिए स्टॉप लॉस कैसे सेट करें? (How to set stop loss?) आइये इस लेख में समझें।
How to set stop Loss For Intraday Trading: जब Day Trading होता है, तो किसी के फैसले के खिलाफ रुझान का एक महत्वपूर्ण मौका होता है, जिसके परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण नुकसान होता है। घाटे के एक विशेष स्तर पर, एक डे ट्रेडर स्टॉप लॉस ऑर्डर का उपयोग कर सकता है। स्टॉप लॉस मेथड में नीचे का ट्रेंड जब लिमिट से टकराता है तो किसी भी अधिक नुकसान को रोकने के लिए ट्रांजैक्शन ऑटोमैटिक रूप से रद्द कर दिया जाता है। stop-Loss ट्रेडिंग की आवश्यकता नहीं है और यह एक व्यक्तिगत विकल्प है, लेकिन यह एक बड़े नुकसान के खतरे को कम करता है।
तो अगर आप भी डे ट्रेडिंग करना चाहते है और इससे होने वाले खतरे को कम करना चाहते है तो इस लेख में जानिए कि इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए स्टॉप लॉस कैसे सेट करें? (How to set stop loss?)
डे ट्रेडिंग के लिए स्टॉप लॉस ऑर्डर | Stop Loss Kaise Lagaye
Intraday Trading में स्टॉप-लॉस ऑर्डर मेथड का उपयोग करना एक व्यक्तिगत विकल्प है, और स्टॉप-लॉस ऑर्डर के लिए उचित मूल्य निर्धारित करना अधिक आवश्यक है। स्टॉप-लॉस ऑर्डर ट्रेंड में एक विशिष्ट स्तर से नीचे के नुकसान को रोकते हैं और व्यापार से बाहर निकलते हैं, लेकिन अगर स्टॉप-ऑर्डर सही तरीके से नहीं रखा गया है, तो यह घाटे को बढ़ाने के लिए एक खिड़की खोलता है, और दिन के बाद से अधिक सतर्क और खतरनाक है। व्यापारी बिना किसी लाभ के समाप्त हो सकता है।
इसके अलावा, जब कोई व्यापारी छुट्टी पर या यात्रा पर होता है, तो वह यह जानकर दिन के लिए व्यापार छोड़ सकता है कि स्टॉप-लॉस ऑर्डर के कारण कोई नुकसान नहीं होगा या सीमित नुकसान होगा।
स्टॉप-लॉस ऑर्डर कितने पर लगाया जाना चाहिए
Stop Loss Kaise Lagaye: ट्रेडिंग करते समय, स्टॉप-लॉस ऑर्डर में कितना स्थान देना है, इस मुद्दे का सामना करना सामान्य है। स्टॉप-लॉस ऑर्डर का मूल्य निर्धारित करने के लिए व्यापारियों द्वारा अक्सर परसेंटेज मेथड का उपयोग किया जाता है। Stop-Loss Order आमतौर पर उस व्यक्ति द्वारा खरीद मूल्य के 10% पर रखा जाता है जो नुकसान के बड़े जोखिम को रोकना चाहता है। उदाहरण के लिए अगर स्टॉक 100 रुपये में खरीदा जाता है और स्टॉप-लॉस ऑर्डर 10% पर रखा गया है, तो जैसे ही जैसे ही स्टॉक की कीमत 90 रुपए होगी तो आर्डर समाप्त हो जाएगा। यह गारंटी देता है कि स्टॉक का आदान-प्रदान या लेनदेन पूरा होने पर कोई महत्वपूर्ण नुकसान नहीं होता है।
समर्थन और प्रतिरोध | Support and Resistance
स्टॉप-लॉस ऑर्डर का उपयोग करने का मुख्य लाभ समर्थन और प्रतिरोध (Support and Resistance) है इंट्राडे ट्रेडर्स बड़े नुकसान से बचने के लिए लाभ उठा सकते हैं, खासकर जब स्टॉप-लॉस पर 10% नियम का उपयोग करके और नुकसान को रोकने के लिए। जब 10% स्टॉप लॉस का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, स्टॉप-लॉस पद्धति दिन के व्यापारियों को नुकसान को रोकने में मदद करती है जब वे एक बुरा निर्णय लेते हैं और बाजार के रुझान उनके खिलाफ होते हैं।
जब स्टॉक का ट्रेंड पसंद के खिलाफ जाता है तो एक निश्चित समय पर ट्रांजैक्शन को ऑटोमैटिक रूप से समाप्त करके अतिरिक्त नुकसान को रोकने के लिए स्टॉप-लॉस मेथड का उपयोग किया जाता है। यह एक शानदार समाधान है और डे ट्रेडर्स के व्यापारियों के लिए व्यक्तिगत प्राथमिकता है जो कीमतों में गिरावट के बाद पैसे खोने से रोकना चाहते हैं। स्टॉप-लॉस ऑर्डर अक्सर स्विंग लो और हाई ऑर्डर के साथ आगे के नुकसान को रोकने के लिए उपयोग किए जाते हैं, क्योंकि वे खतरनाक होते हैं और इसके परिणामस्वरूप सामान्य से अधिक नुकसान हो सकता है।
काम की खबर: करदाता शेयर बाजार का कारोबार करता है तो आयकर विभाग को देनी होगी जानकारी, नहीं तो लग सकती है ब्याज और पेनल्टी
बहुत से लोग शेयर बाजार में रुचि रखते हैं। कई बार जल्दी मुनाफा कमाने के लिए इंट्रा-डे ट्रेडिंग भी करते हैं। कम मात्रा में ट्रेडिंग करने की वजह से लाभ या हानि उनके लिए ज्यादा महत्व नहीं रखता है। इसी वजह से ऐसे करदाता आयकर रिटर्न की ई-फाइलिंग में अक्सर इस लेन-देन का उल्लेख नहीं करते। चूंकि अब आयकर विभाग के पास शेयर ब्रोकर के जरिए सारी जानकारी जा रही है। करदाता इसकी जानकारी आयकर रिटर्न में नहीं देता तो टैक्स के साथ ब्याज व पेनल्टी लग सकती है। इससे पहले नोटिस दिया जाएगा।
टैक्स ऑडिट के धारा - 44 एबी के मामले लागू होंगे
सीए पियूष जैन ने बताया कि चूंकि एफएंडओ ट्रेडिंग की आय को सामान्य व्यावसायिक आय के रूप में माना जाता है, केपिटल गेन में नहीं, इसलिए टैक्स ऑडिट पर लागू होने वाले सामान्य नियम लागू होंगे। धारा-44 एबी में कहा गया है यह एफएंडओ के मामले में भी लागू होंगे। एफएंडओ ट्रेडिंग में टैक्स ऑडिट की जरूरत होगी। यदि वित्तीय वर्ष में बिक्री, टर्न ओवर या सकल प्राप्तियां 1 करोड़ रुपए से अधिक है तो करदाता को टैक्स ऑडिट करना होगा। यह अनिवार्य किया गया है।
एफएंडओ को केपिटल गेन की श्रेणी नहीं माना जाएगा
आयकर अधिनियम की धारा 43(5) में कहा गया है कि फ्यूचर्स और ऑप्शंस ट्रेडिंग के दौरान होने वाले किसी भी लेनदेन को शेयर ट्रेडिंग की तरह केपिटल गेन की श्रेणी में नहीं लिया जाता है न ही इसे स्पेक्यूलेटिव बिजनेस माना जाएगा। इस तरह के व्यापार से होने वाले किसी भी लाभ पर उसी तरह से कर लगाया जाएगा। लाभ हो या हानि फ्यूचर्स और ऑप्शंस के लेनदेन में शामिल व्यक्ति को अपने आईटीआर में इसका उल्लेख करना चाहिए। लापरवाही करने पर पेनल्टी लग सकती है।
मुनाफा दिखाकर ऑडिट फ्री होने का भी है अवसर
यदि एफएंडओ ट्रेडिंग में 2 करोड़ तक का टर्नओवर है तो करदाता 6 प्रतिशत मुनाफा दिखाकर ऑडिट से मुक्त हो सकता है। बाकी सभी केस में ऑडिट अनिवार्य होगा। बुक्स ऑफ एकाउंट्स भी बनाना अनिवार्य होगा। बुक्स मेंटेन करने से हमें खर्चों की छूट मिलती है, जिसमें ब्रोकरेज, ब्रोकर कमीशन, फोन बिल्स, इंटरनेट बिल, निवेश सलाहकार के खर्चे आदि शामिल हैं। फ्यूचर्स एंड ऑप्शन से होने वाली लाभ- हानि को व्यावसायिक आय की तरह ट्रीट किया जाएगा। इसकी जानकारी दी जा रही।
छोटे-मोटे लेन को छोड़ने से हो सकती है कार्रवाई
यदि कोई व्यक्ति असमायोजित पूंजीगत हानि को आगे बढ़ाना चाहता है या पिछले वर्ष से इस तरह के नुकसान को आगे लाना चाहता है, तो आईटीआर दाखिल करना आवश्यक होगा। व्यापार हानि को शेष मदों से आय में किराए की आय या ब्याज आय को समायोजित नहीं किया जा सकता। किसी भी असमायोजित नुकसान को आठ साल के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है। कर से बचने के कारण दंडात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है। इससे बचने के लिए पूरी जानकारी देनी होगी।
सेबी के नए मार्जिन नियम आज से लागू, यहां जानिए अपने हर सवाल का जवाब
कैश मार्केट में मार्जिन से जुड़े ने नियम 1 सितंबर से लागू हो गए हैं. सेबी ने इसे कुछ समय टालने की अपील ठुकरा दी है
सेबी मार्जिन के दो तरह के नियमों को लागू करना चाहता है. पहला नियम कैश मार्केट में अपफ्रंट मार्जिन से संबंधित है.
मैं मार्जिन को पूरी तरह से नहीं समझता, क्या मुझे इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
मार्जिन का मतलब उस रकम से है, जो आपके ट्रेडिंग इंट्रा डे ट्रेडिंग नियम अकाउंट में होती है. सामान्य रूप से निवेशक को अपने ट्रेडिंग अकाउंट में जमा रकम से शेयर खरीदने की इजाजत होनी चाहिए. लेकिन, व्यवहार में मामला थोड़ा अलग है. कई ब्रोकिंग कंपनियां अपने क्लाइंट को शेयर खरीदने के लिए रकम उधार देती हैं. इसे लिवरेज या मार्जिन ट्रेडिंग कहते हैं. इंट्राडे ट्रेडिंग में यह ज्यादा देखने को मिलता है.
फिर, 1 सितंबर से क्या बदलने जा रहा है?
पहले हम यह समझते हैं कि शेयरों की डिलीवरी किस तरह होती है. अभी बाजार में डिलीवरी के लिए टी+2 (ट्रेडिंग प्लस दो दिन) मॉडल का पालन होता है. इसका मतलब है कि अगर आप सोमवार को शेयर खरीदते या बेचते हैं तो यह बुधवार को डेबिट या क्रेडिट होगा. इसी तरह शेयर का पैसा भी बुधवार को आपके अकाउंट में आएगा या उससे जाएगा. इस मॉडल में ब्रोकर्स क्लाइंट के अकाउंट में पैसा नहीं होने पर भी शेयर खरीदने की इजाजत देते हैं. यह इस शर्त पर किया जाता है कि आप पैसा टी+1 या टी+2 दिन में चुका देंगे.
अब सेबी ने जो नया नियम बनाया है, उसमें ब्रोकर को सौदे की कुल वैल्यू का 20 फीसदी क्लाइंट से अपफ्रंट लेना होगा. इसका मतलब यह है कि सौदे के वक्त क्लाइंट (रिटेल निवेशक) को 20 फीसदी रकम चुकाना होगा. उदाहरण के लिए अगर रिटेल निवेशक रिलायंस इंडस्ट्रीज के एक लाख रुपये मूल्य के शेयर खरीदता है तो ऑर्डर प्लेस करने से पहले उसके ट्रेडिंग अकाउंट में कम से कम 20,000 रुपये होने चाहिए. बाकी पैसा वह टी+1 या टी+2 दिन में या ब्रोकर के निर्देश के मुताबिक चुका सकता है. सेबी के नए नियम के मुताबिक शेयर बेचते वक्त भी आपके ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन होना चाहिए.
शेयर बेचने के लिए मेरे ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन क्यों होना चाहिए?
सेबी ने सोच-समझकर यह नियम लागू किया है. इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिए आप सोमवार को 100 शेयर बेचते हैं. ये शेयर आपको अकाउंट से बुधवार को डेबिट होंगे. लेकिन, अगर आप मंगलवार (डेबिट होने से पहले) को इन शेयरों को किसी दूसरे को ट्रांसफर कर देते हैं तो सेटलमेंट सिस्टम में जोखिम पैदा हो जाएगा.
ब्रोकिंग कंपनियों के पास ऐसा होने से रोकने के लिए हथियार होते हैं. 95 फीसदी मामलों में ऐसा नहीं होता है. सेबी ने यह नियम इसलिए लागू किया है कि 5 फीसदी मामलों में भी ऐसा न हो.
यह नियम कुछ ज्यादा सख्त लगता है, क्या इसका कोई दूसरा तरीका नहीं है?
इसका दूसरा तरीका है. सेबी ने बगैर मार्जिन शेयर बेचने की इजाजत दी है. लेकिन, इसमें शर्त यह है कि ब्रोकर के पास ऐसा सिस्टम होना चाहिए, जिसमें शेयर बेचने के दिन वह शेयरों को क्लाइंट के अकाउंट से अपने अकाउंट में ट्रांस्फर कर लें. लेकिन, इसमें कुछ ऑपरेशनल दिक्कतें हैं.
इस नियम का बाजार पर क्या असर पड़ेगा?
विश्लेषकों और इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि नए नियमों से ट्रेडिंग वॉल्यूम घटेगा. लेकिन, कुछ लोगों का मानना है कि पिछले 25 साल में जब भी नए नियम लागू किए गए, बाजार ने उसके हिसाब से खुद को ढाल लिया. नए नियम बाजार में जोखिम घटाने और निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए लागू किए जाते हैं.
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