भारत दे सकता है 18 वस्तुओं के निर्यात पर बल

विकसित देशों में भारतीय वस्तुओं की मांग में कमी को देखते हुए भारत विकासशील देशों में 18 उत्पादों के निर्यात पर जोर दे सकता है। इनमें कीटनाशक, निर्माण सामग्री, रसायन, लौह एवं स्टील जैसी वस्तुएं शामिल हैं। इस समय भारत विकासशील देशों की इन वस्तुओं की सिर्फ 2.5 प्रतिशत मांग पूरी करता है।

एमवीआईआरडीसी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर मुबई की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर भारत अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर पाने में सफल होता है तो इससे निर्यात बढ़कर 34 अरब डॉलर हो सकता है।

विदेश में मांग की कमी, भूराजनीतिक तनावों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की वजह से नवंबर में भारत के वाणिज्यक वस्तुओं का निर्यात महज 0.59 प्रतिशत बढ़कर 31.99 अरब डॉलर रहा है और विदेशी खेप पर अभी इन बाहरी वजहों का असर जारी रहने की संभावना है। लगातार एक साल से टिकाऊ वृद्धि के बाद जुलाई से ही निर्यात सुस्त है।

अक्टूबर में भारत के वाणिज्यक वस्तुओं का निर्यात 2 साल में पहली बार संकुचित हुआ था, क्योंकि त्योहारों के मौसम और बाहरी वजहों से मांग प्रभावित हुई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे समय में विकासशील देश भारत के निर्यात के क्षमतावान केंद्र हो सकते हैं, जब अगड़े देशों में मंदी की स्थिति है। संयुक्त राष्ट्र की सांख्यिकी शाखा के वर्गीकरण के मुताबिक 181 विकासशील देश हैं। भारत के वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात में विकासशील देशों का हिस्सा 2016 के 58 प्रतिशत से गिरकर 2021 में 55 प्रतिशत रह गया है।

अंकटाड के आंकड़ों के मुताबिक ये विकासशील देश कुल मिलाकर 9.2 लाख करोड़ डॉलर के वस्तुओं का आयात करते हैं और भारत इनकी आयात मांग बमुश्किल 2.5 प्रतिशत पूरी कर पाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन, अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, जर्मनी, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया के बाद भारत विकासशील देशों में निर्यात करने वाला नवां बड़ा निर्यातक है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘विकासशील देश इन 18 उत्पादों का सालाना 2,163 करोड़ रुपये का आयात करते हैं, जिसमें भारत 74 अरब डॉलर का या कुल निर्यात मांग का 3 प्रतिशत निर्यात करता है। अगर भारत अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 5 प्रतिशत करने में सफल हो जाता है तो इससे वाणिज्यिक वस्तुओं का निर्यात बढ़कर 34 अरब डॉलर या देश के कुल वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात का 8 प्रतिशत हो जाएगा।’

डब्ल्यूटीसी मुंबई ने 18 उत्पादों को चिह्नित किया है, जहां विकासशील देशों के कुल आयात में भारत अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है और 2016 से इनमें तेजी है। इन 18 उत्पादों में से 10 उत्पाद में भारत की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से कम है, जिससे पता चलता है कि भारत निर्यात बढ़ा सकता है। 10 उत्पाद ऐसे हैं, जहां भारत कुल आयात मांग की 1 प्रतिशत आपूर्ति करता है। इनमें लकड़ी के उत्पाद, इत्र, सौंदर्य प्रसाधन, डेयरी उत्पाद, फर्नीचर, पेय पदार्थ, विद्युत मशीनरी, खिलौने, कार्यालय मशीनें, उर्वरक और लुगदी शामिल हैं।

हाईकोर्ट ने फास्टैग के बिना यात्रियों के लिए दोहरे टोल टैक्स को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब

दिल्ली कोर्ट

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटी एंड एच) के माध्यम से उस नियम और ट्रेडर किन लोगों को कहा जाता है सर्कुलर के बारे में जवाब मांगा, जिसमें कार्यात्मक फास्टैग के बिना यात्रियों को दोहरा टोल टैक्स चुकाने की आवश्यकता होती है।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने एक नोटिस जारी किया और सरकार को एक हलफनामा पेश करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।

मामले की सुनवाई अब 18 अप्रैल, 2023 को होगी।

वकील रविंदर त्यागी ने जनहित याचिका दायर कर सरकार के नियमों और फैसलों को अनुचित, मनमाना और जनहित के खिलाफ बताया है।

याचिकाकर्ता रविंदर त्यागी ने राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरों और संग्रह का निर्धारण) संशोधन नियम, 2020 के एक प्रावधान को रद्द करने का अनुरोध किया है। फास्टैग एक ऐसा उपकरण है जिसमें टोल भुगतान करने के लिए 'रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन' (आईएफआईडी टैग) तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

याचिका में तर्क दिया गया है कि सरकार ने देश भर में लोगों और चीजों की आवाजाही पर तर्कहीन प्रतिबंध लगा दिया है, जिसका पीछा किए जा रहे लक्ष्य से कोई लेना-देना नहीं है।

याचिका के अनुसार, "यह भी निवेदन किया गया है कि राज्य की प्रशासनिक सुविधा (ऑनलाइन तंत्र के माध्यम से टोल शुल्क के संग्रह की) भेदभाव का आधार नहीं हो सकती है। यह भी निवेदन किया गया है कि राज्य की कोई भी सुविधा नियम और आक्षेपित आदेशों/परिपत्रों/अधिसूचनाओं द्वारा लगाए गए प्रकृति के भेदभाव के लिए आधार नहीं हो सकती है।"

इसमें कहा गया है कि नकद भुगतान करने वाले लोगों से दो गुना ज्यादा वसूल करने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि एनएचएआई और एमओआरटी एंड एच द्वारा यात्रियों को प्रदान की जाने वाली सेवाएं समान हैं।

"अधिकारियों को, कम से कम 50 प्रतिशत, टोल गेटों का 25 प्रतिशत कैश/फास्टैग और शेष केवल फास्टैग के रूप में रखना चाहिए था। यह प्रस्तुत किया जाता है कि इस पद्धति से, वर्तमान स्थिति बनाए बिना, निर्बाध यात्रा के मुद्दे को संबोधित किया गया होगा।"

क्या लिटरेचर फेस्टिवल हकीकत में किताबों को प्रमोट करने में लेखकों की मदद करते हैं?

नई सदी में चीजें काफी तेजी से बदल गईं. बुक फेयर की जगह मेलों ने ले ली. पूरे शहर में चप्पे-चप्पे पर बुक स्टोर्स खुल गए और जल्द ही वे ऑनलाइन भी आ गए. पढ़िए झेलम बिस्वास की ये रिपोर्ट.

क्या लिटरेचर फेस्टिवल हकीकत में किताबों को प्रमोट करने में लेखकों की मदद करते हैं?

बात 80 के दशक की है. उस वक्त मैं छोटी बच्ची ट्रेडर किन लोगों को कहा जाता है थी, जो उस कलकत्ता में पली-बढ़ी, जिसे आज के जमाने में कोलकाता कहा जाता है. यह वह दौर था, जब बुक फेयर यानी पुस्तक मेला किसी तीर्थ यात्रा की तरह माना जाता था. बुक फेयर जनवरी के आखिरी दिनों में शुरू होता था, जिससे इसमें 23 और 26 जनवरी की छुट्टियों को शामिल किया जा सके. साथ ही, फरवरी में आने वाली सरस्वती पूजा भी इससे जुड़ जाए. आखिरकार, मां सरस्वती को शिक्षा की देवी कहा जाता है और यही वजह है कि वे किताबों की भी अधिष्ठात्री देवी हैं.

बुक फेयर का मतलब सिर्फ एक बार वहां घूमने जाने से नहीं था. मैं पहली बार तो सिर्फ यह देखने जाती थी कि किस स्टॉल पर कौन-सी किताबें हैं. साथ ही, यह भी देखती थी कि मुझे किस स्टॉल से क्या खरीदना है. यह पूरी तरह खोजबीन वाला कार्यक्रम होता था. जब मैं दूसरी बार बुक फेयर जाती तो मेरे साथ उन किताबों के नामों की लिस्ट ट्रेडर किन लोगों को कहा जाता है होती थी, जिन्हें मैं खरीदना चाहती थी. इस बार बुक फेयर जाने का सीधा मतलब किताबें खरीदने से होता था. यदि मैं अपनी शॉपिंग लिस्ट नहीं निपटा पाती तो मैं तीसरी और यहां तक कि चौथी बार भी बुक फेयर चली जाती थी. दरअसल, कलकत्ता बुक फेयर उत्साही पाठकों के लिए होता था. यह कोई ट्रेड फेयर नहीं था. यह तो किसी वार्षिक कार्यक्रम की तरह होता था, जहां से लोग अपने लिए किताबें खरीदते थे और साल भर का कोटा पूरा कर लेते थे.

वह सेल्फी वाला दौर नहीं था

बेशक कलकत्ता में ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर था. इसके अलावा कॉलेज स्ट्रीट में भी बुक स्टॉल्स थीं, लेकिन सभी लोग बुक फेयर से ही किताबें खरीदते थे. दरअसल, बुक फेयर एक ऐसी जगह थी, जहां हम लेखकों से मुलाकात कर पाते थे. बस शुक्र इस बात का है कि वह सेल्फी वाला दौर नहीं था. हमारा ध्यान सिर्फ उन बातों पर होता था, जिनका जिक्र मंच से किया जाता था. शहर के बीचोबीच से हटने के बाद मेले का चार्म कुछ कम जरूर हो गया है, लेकिन इसका आकर्षण आज भी बरकरार है. भले ही यह धुंधला क्यों न हो गया हो. लोग अब भी उस वार्षिक तीर्थयात्रा में पहुंचते हैं और मेरे जैसे तमाम लोग इस मेले में श्रद्धांजलि देने के लिए कोलकाता में मौजूद रहते हैं.

चीजें काफी तेजी से बदल गईं, बुक फेयर की जगह मेलों ने ले ली

नई सदी में चीजें काफी तेजी से बदल गईं. बुक फेयर की जगह मेलों ने ले ली. पूरे शहर में चप्पे-चप्पे पर बुक स्टोर्स खुल गए और जल्द ही वे ऑनलाइन भी आ गए. शुरुआत में यह सब काफी अच्छा लगा, क्योंकि अब मैं सालभर में किसी भी वक्त किताबें खरीद सकती थी. किताबें घर पर ही डिलीवर हो जाती थीं. अगर कोई किताब मुझे पसंद नहीं आती तो मैं उन्हें वापस भी कर सकती थी. लेकिन इससे पढ़ने की आदत पर क्या असर पड़ा? इसकी वजह से लोग पुस्तक प्रेमी यानी बिब्लियोफिल्स तो हो गए, जो किताबें खरीदना पसंद करते हैं, लेकिन शायद ही उन्हें कभी पढ़ते हैं. और मैं खुद इस आदत का शिकार हो चुकी हूं.

20 साल में देश में करीब ऐसे 70-80 इवेंट आयोजित हुए

अब हम पुस्तक मेलों की बात करें तो पिछले दो दशक के दौरान देश में ऐसे करीब 70-80 इवेंट आयोजित हुए हैं, लेकिन क्या इनमें से कई की हमें जरूरत थी? क्या इन मेलों से पढ़ने की आदत में बदलाव आता है? क्या इससे किताबों की बिक्री में इजाफा होता है या इनका एजेंडा ही अलग है? उदाहरण के लिए, कोलकाता में अब एक के बाद एक यानी कुल दो साहित्य उत्सव होते हैं. इनमें से एक एपीजे की ओर से आयोजित किया जाता है और दूसरे का आयोजन टाटा स्टील की ओर से होता है. लेकिन हकीकत में देखा जाए तो मेरा पुराना प्यार कोलकाता बुक फेयर ही है. मुझे लगता है कि लिटरेचर फेस्ट मुख्य रूप से नेटवर्किंग के पॉइंट हैं. उम्मीद है कि कुछ लोग मेरी बातों से जरूर सहमत होंगे.

एकदम नए लेखक के रूप में मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि लिटरेचर फेस्ट में आमंत्रित होने से मुझे पहचान मिली, लेकिन क्या इससे मेरी किताबों की बिक्री बढ़ गई? ऐसा होना जरूरी नहीं है. कम से कम मेलों में लगी बुक स्टॉल से तो ऐसा नहीं होता है. ईमानदारी से कहूं तो इन मेलों में मैं दूसरे लेखकों की हौसलाअफजाई करती हूं और वे मेरी. यह किताबों की बिक्री से आगे की चीज है. मैंने उन लेखकों की किताबें खरीदीं, जिनके साथ मैं पैनल में थी और उन्होंने मेरी किताबों पर पैसे खर्च किए.

दर्शकों की मौजूदगी होने पर किताबें बिकतीं

टाटा स्टील कोलकाता लिटररी मीट का आयोजन करने वाली संस्था गेम प्लान की मालविका बनर्जी कहती हैं, ‘मेलों से किताबों में दिलचस्पी बनी रहती है और ऑथर के सेशन से उनकी किताब की बिक्री में इजाफा होता है.’ यकीनन, इन मेलों से किताबों में दिलचस्पी बनी रहती है, लेकिन इससे मुझे भी कई सीख मिली हैं. पहली, इंट्रेस्टिंग पैनल में मेरी और अच्छे दर्शकों की मौजूदगी होने पर किताबें बिकती हैं.

दूसरा, ये मेले सोशलाइजिंग और मार्केटिंग के लिए होते हैं, जिनसे आने वाले वक्त में मदद मिलती है. तीसरा, इन मेलों में मुझे अपने पसंदीदा लेखकों से मुलाकात करने और उनकी बातों को सुनने का मौका मिलता है. मशहूर लेखकों के साथ फोटो खिंचवाने, आयोजन समिति की पोस्ट में टैग होने आदि से लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने में मदद मिलती है. कुल मिलाकर यूं कह लीजिए कि इससे आप आसानी से ट्रेंड में शामिल हो जाते हैं.

लिटरेचर फेस्ट से किताबों की बिक्री में इजाफा नहीं होता

पेंग्विन रैंडम हाउस के पिनाकी सरकार कहते हैं, ‘लिटरेचर फेस्ट से किताबों की बिक्री में इजाफा नहीं होता है. हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि झारखंड लिटरेचर फेस्ट और तेजपुर लिटरेचर फेस्ट जैसे नए कार्यक्रमों ने अच्छे-खासे नंबर हासिल किए.’ इन दोनों मेलों से स्थानीय साहित्यकारों को मौका मिला. साथ ही, कई ऐसी साहित्यिक हस्तियों को मंच मिला, जिन्हें दूसरी जगह पहचान नहीं मिलती.

ऐसा लगता है कि नए लिटरेचर फेस्ट से एक उम्मीद और विविधता जन्म लेती है. शायद आने वाले वर्षों के दौरान इस तरह के लिटरेचर फेस्ट की संख्या में इजाफा होगा. लेकिन क्या पुराने और जाने-पहचाने लोगों की शोहरत इस तरह कायम रहेगी? दरअसल, नियमित तौर पर होने वाले लिटरेचर फेस्ट में अब लोगों की दिलचस्पी ज्यादा नजर नहीं आती है. जब तक पुरानी ब्रिगेड अपने गेम प्लान में बदलाव नहीं करेगी, तब तक हर साल होने वाले ये कार्यक्रम सुस्त पड़ते रहेंगे और अपनी चमक खो देंगे.

IPO ने लिस्टिंग डे पर कराया था नुकसान, अब धड़ाधड़ चढ़ रहा शेयर, 6 महीने के हाई पर भाव

भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के शेयर छह महीने के हाई 754.40 रुपये पर पहुंच गए। कमजोर बाजार के बावजूद मंगलवार के इंट्रा-डे ट्रेड में LIC के शेयर बीएसई पर 3 प्रतिशत की तेजी के साथ कारोबार कर रहे थे।

IPO ने लिस्टिंग डे पर कराया था नुकसान, अब धड़ाधड़ चढ़ रहा शेयर, 6 महीने के हाई पर भाव

LIC Share Price: भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के शेयर छह महीने के हाई 754.40 रुपये पर पहुंच गए। कमजोर बाजार के बावजूद मंगलवार के इंट्रा-डे ट्रेड में LIC के शेयर बीएसई पर 3 प्रतिशत की तेजी के साथ कारोबार कर रहे थे। पिछले दो कारोबारी सत्रों में सरकारी स्वामित्व वाली बीमा कंपनी के शेयर में 10 फीसदी की तेजी आई है। यह 7 जून 2022 के बाद से अपने हाई पर कारोबार कर रहा था। वर्तमान में एलआईसी के शेयर 738.40 रुपये पर हैं।

क्या है योजना?
पिछले एक महीने में एलआईसी के शेयर की कीमत बेंचमार्क इंडेक्स में 1 फीसदी की गिरावट के मुकाबले 20 फीसदी बढ़ी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार का टारगेट एलआईसी के पहले मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में एक प्राइवेट सेक्टर के पेशेवर को नियुक्त करना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शेयर बाजार में निराशाजनक शुरुआत के बाद सरकार सबसे बड़े बीमाकर्ता को आधुनिक बनाने की योजना बना रही है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त मंत्रालय ने बीमा कानूनों में कई संशोधनों का प्रस्ताव दिया है। इनमें बीमा कंपनियों को एक समग्र लाइसेंस देने से लेकर उन्हें विभिन्न वित्तीय उत्पादों को बेचने की अनुमति देने तक के प्रस्ताव हैं। इतना ही नहीं इनमें अध्यक्ष और पूर्णकालिक सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने का भी प्रस्ताव है।

IPO ने कराया था नुकसान
आपको बता दें कि इसी साल मई में एलआईसी का आईपीओ आया था। एलआईसी 17 मई को शेयर बाजारों में लिस्टेड हुई थी। तब से कंपनी का शेयर अपने आईपीओ के इश्यू प्राइस 949 रुपये के स्तर तक भी नहीं जा सका है। बता दें कि कंपनी का शेयर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर 872 रुपये के भाव पर सूचीबद्ध हुआ था। इश्यू प्राइस से यह शेयर 22 पर्सेंट नीचे कारोबार कर रहा है। पिछले एक महीने में यह शेयर 17% तक चढ़ा है।

धनबाद : लोगों को पाप, दोष व अपराध से मुक्ति देने के लिए यीशु ने लिया जन्म- फादर कुजूर

मैथन, चिरकुंडा में क्रिसमस की धूम, चर्चों में बनी चरनी आकर्षण का केंद्र

लोयोला स्कूल स्थित होली फैमिली चर्च में बनी चरनी

लोयोला स्कूल स्थित होली फैमिली चर्च में बनी चरनी

Maithon : मैथन, चिरकुंडा व कुमारधुबी क्षेत्र में क्रिसमस की धूम है. चिरकुंडा के लोयोला स्कूल प्रागंण स्थित होली फैमिली चर्च में 25 दिसंबर की सुबह आठ बजे से क्रिसमस सेलिब्रेशन हर्षोल्लास के साथ शुरू हुआ. मसीही समुदाय के लोगों ने प्रभु यीशु के जन्मदिन की खुशियां मनायीं. फादर अमाथुस कुजूर ने अपने संदेश में कहा कि क्रिसमस प्यार का पर्व है. लोगों के बीच प्यार बांटने के लिए ही प्रभु यीशु ने दुनिया में जन्म लिया था. यीशु हमें पाप, दोष व अपराधों से मुक्ति देने के लिए आए हैं. क्रिसमस पर वे सभी को प्रेम, शांति व समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. सच्चे मन से जो प्रभु यीशु का नाम लेता है, उसका जीवन खुशहाल हो जाता है.

इससे पूर्व क्रिसमस सेलिब्रेशन के लिए 24 दिसंबर की रात बड़ी संख्या में ईसाई समुदाय के लोग चर्च में जुटे और विशेष प्रार्थना सभा में भाग लिया. रात 10.30 बजे से कैरोल गीत के साथ सेलिब्रेशन शुरू हो गया. रात 11 बजे मिस्सा पूजा अनुष्ठान हुआ. इसके बाद चर्च में बनी आकर्षक चरनी में बालक यीशु के चुम्बन, बाइबल पाठ, सामूहिक आराधना व प्रार्थना सभा का आयोजन हुआ. गीत-संगीत व पारम्परिक नृत्य प्रस्तुत कर मसीही समुदाय के लोगों ने प्रभु यीशु के जन्म की खुशियां मनाई. रात एक बजे तक सभी झूमते रहे. फिर सभी ने मिलकर प्रभु भोज का आनंद लिया. लोगों ने रविवार को एक-दूसरे के घरों में जाकर गले मिल क्रिसमस की शुभकामनाएं दी. त्योहार की खुशी में परिवार, रिश्तेदारों व मित्रों के साथ लजीज व्यंजनों का आनंद उठाया.

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