मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव
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मुद्रास्फीति की स्थिति में, नि .
मजदूरी की तुलना में लाभ तेजी से बढ़ते हैं पूंजी का अवमूल्यन होता है जीवन निर्वाह लागत बढ़ जाती है मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव देश के निर्यात अधिक प्रतिस्पध्ति हो जाता है |
Solution : मुद्रास्फीति से तात्पर्य अर्थव्यवस्था में एक निर्दिष्ट समय से अधिक अब मैं वस्तुओं और सेवाओं के सामान्य कीमत स्तर में होने वाली धारणीय वृद्धि है। कीमत स्तर में वृद्धि के कारण विश्य बाजार में निर्यात कम प्रतियोगी जाता है अन्ततः इससे निर्यात की मांग, में कमी आ सकती है, लाभ कम सकता है, रोजगार के अवसरों में कमी आ सकती है, और देश के व्या . .संतुलन की स्थिति भी खराब हो सकती है। निर्यात में कमी:आने से राष्ट्रआय और रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, दीर्घकाल ऐसी स्थिति बनी रहने पर मुद्रा का अवमूल्यन हो जाता है जो निर्यातों प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाए रखता है।
मुद्रा के अवमूल्यन का प्रभाव क्या होता है?
Answer : विदेशी बाजारों में घरेलू निर्यातों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है
Explanation : किसी मुद्रा के अवमूल्यन का प्रभाव यह है कि वह अनिवार्य रूप से विदेशी बाजारों में घरेलू निर्यातों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है। अवमूल्यन का तात्पर्य विदेशी मुद्राओं के सन्दर्भ में अपने देश की मुद्रा के मूल्य में जान-बूझकर कमी करना है। अवमूल्यन तभी सफल होता है, जब कोई दूसरा देश इसके विरोध में अपनी मुद्रा का अवमूल्यन न करे। इसके अतिरिक्त घरेलू बाजार में उन वस्तुओं की कीमत बढ़ जाएगी, जिनके निर्माण में प्रयुक्त सामग्री विदेशों से आयात करनी पड़ती है। अतः अवमूल्यन के कारण घरेलू मूल्य में होने वाली वृद्धि दर अवमूल्यन की तुलना में कम होनी चाहिए।. अगला सवाल पढ़े
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मुद्रा के अवमूल्यन का प्रभाव क्या होता है?
Answer : विदेशी बाजारों में घरेलू निर्यातों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है
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मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव
Q. मुद्रा के अवमूल्यन होने पर अर्थव्यवस्था में निम्न मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव में कौन से प्रभाव संभव है
चीनी मुद्रा के अवमूल्यन से दुनिया भर में मुसीबत
चीन ने पहले अपनी मुद्रा का 1.9 फीसदी अवमूल्यन किया और फिर अगले दिन ऐसे कदम उठाए, जिनसे युवान मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव का मूल्य और गिरा। चीनी अर्थव्यवस्था की हैसियत ऐसी है कि वहां जो भी हो, उसके प्रभाव से दुनिया का कोई हिस्सा बच नहीं पाता। नतीजतन, दुनिया भर में चीन के इस कदम से हलचल है। उसका शिकार भारतीय मुद्रा भी हुई। बुधवार को डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत सितंबर 2013 के बाद के सबसे निचले स्तर (64.78 रुपए) पर पहुंच गई।
चीन ने अपनी गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने की कोशिश में युवान का अवमूल्यन किया है, जबकि यह आम शिकायत रही है कि उसने युवान को पहले भी कृत्रिम तरीके से सस्ता बना रखा था। अब उसने अपनी मुद्रा की कीमत और गिराई है, तो पश्चिमी देशों से उसका ‘मुद्रा युद्ध’ होने की आशंकाएं जताई मुद्रा अवमूल्यन का प्रभाव जाने लगी हैं। अमेरिका में यह मांग पुरजोर ढंग से उठी है कि ओबामा प्रशासन चीन के खिलाफ कड़े व्यापारिक कदम उठाए। इस घटनाक्रम से विश्व व्यापार का माहौल बिगड़ने का अंदेशा है। इसी की चिंता दुनिया भर के शेयर बाजारों में झलकी है।
युवान सस्ता होने से चीनी निर्यात सस्ते होंगे, लेकिन चीन में आयात गिरेगा। खासकर लोहा, एल्यूमिनियम, तांबा आदि जैसी धातुओं तथा अन्य कच्चे माल पर इसका असर पड़ेगा, जिनका चीन सबसे बड़ा आयातक है। इससे इन पदार्थों के बाजार में मंदी का माहौल बनेगा। भारत इन प्रभावों से बच नहीं सकता। भारत की तीन चिंताएं स्पष्ट हैं। पहली तो यही कि वैश्विक बाजार के रुख के मद्देनजर रुपए की कीमत में उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है। फिर चीनी निर्यात सस्ता होने से भारत से निर्यातित कई पदार्थों के लिए प्रतिस्पर्द्धा तीखी होगी। इसके अलावा यहां से चीन जाने वाले भारतीय कच्चे माल के लिए प्रतिकूल स्थितियां बनेंगी, वहीं सस्ते चीनी माल से भारतीय बाजारों के और भी ज्यादा पटने की आशंका है।
जाहिर है, भारत के सामने नई चुनौतियां आ गई हैं। भारतीय निर्यात में पहले से गिरावट का रुख है। दोबारा तीव्र और ऊंची आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने की जद्दोजहद अभी जारी ही है। मगर चीन पर किसी देश का नियंत्रण नहीं है। वह विश्व व्यापार के नियमों का मनमाने ढंग से उल्लंघन करता है। ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के पास एकमात्र विकल्प यही है कि वे रुपए को संभालने, चीन द्वारा माल डम्पिंग रोकने तथा अपने निर्यात को सहारा देने के लिए यथासंभव कदम उठाएं।
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