पैसे का अवमूल्यन और पुनर्मूल्यांकन क्या है? What is what is Devaluation and Revaluation of Money / Rupee

आधुनिक मौद्रिक नीति में घरेलू मुद्रा का मूल्य बाह्य-मूल्य ( विदेशी मुद्राओं के मूल्य) से जान-बूझकर कम आधुनिक दुनिया में मुद्रा विनिमय कर देना "मुद्रा का अवमूल्यन (Devaluation of Money)" कहलाता है। अवमूल्यन के विपरीत, घरेलू मुद्रा को और अधिक महंगा बनाने वाली विनिमय दर में बदलाव को पुनर्मूल्यांकन (Revaluation) कहा जाता है।

अवमूल्यन (Devaluation) परिणाम क्या होता है ?

  • देश की मुद्रा की क्रय शक्ति में कमी।
  • विदेशी ग्राहकों के लिए निर्यात सस्ता है
  • घरेलू ग्राहकों के लिए आयात महंगा।
  • अल्पावधि के लिए, अवमूल्यन की वजह से मुद्रास्फीति, उच्च विकास और निर्यात की बढ़ती मांग बढ़ती है।

मुद्रा युद्ध को प्रतिस्पर्धी अवमूल्यन के रूप में भी जाना जाता है, यह रक ऐसी स्थिति है जिसमे एक देश अन्य मुद्राओं की तुलना में अपनी मुद्रा की विनिमय दर में गिरावट करता है , ताकि अन्य देशों से व्यापार लाभ हासिल कर सके। यदि सभी देश यह रणनीति अपनाते हैं, तो इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में समान गिरावट आ सकती है, जिससे सभी देशों को नुकसान हो सकता है।

वर्ष 1949, 1966 और 1991 में भारतीय रुपये का अवमूल्यन किया गया था। लेकिन 1991 में, अवमूल्यन दो चरणों में किया गया था - 1 जुलाई और 3 जुलाई को। इसलिए, कह सकते है कि भारत में मुद्रा का अवमूल्यन 3 चरणों में 4 बार किया गया।

क्रिप्‍टो करेंसी राष्ट्र और राष्ट्रवाद के लिए कितना बड़ा खतरा? जानिए- अपने नफे-नुकसान की बातें

क्रिप्‍टो करेंसी एक वर्चुअल करेंसी है और क्रिप्टो करेंसी में सबसे लोकप्रिय बिटकॉइन है. बिटकॉइन को 2009 में लॉन्‍च किया गया था और इसके बाद से कई और क्रिप्टो करेंसी लॉन्च हो चुकी हैं.

By: मृत्युंजय सिंह | Updated at : 04 Mar 2020 02:28 PM (IST)

नई दिल्ली: क्रिप्‍टो करेंसी पर आरबीआई ने साल 2018 में आधुनिक दुनिया में मुद्रा विनिमय बैन लगाया था जिसे आज सुप्रीम कोर्ट ने हटाने का फैसला किया है. क्रिप्टो करेंसी के चलन से से क्या देश और दुनिया की सुरक्षा को खतरा पैदा होगा यह सवाल उठने लगा है. क्या क्रिप्टो करेंसी राष्ट्रवाद के लिए भी खतरनाक है?

आज दुनिया में ऐसी सैकड़ों हजारों वेबसाइट और कंपनियां है जो बिटकॉइन को मुद्रा के रूप में स्वीकार कर रही है. दुनिया के भौतिक बाजार आजकल इंटरनेट पे और इंटरनेट हमारे मोबाइल पे आ गया है. लोग अपने खरीददारी का एक बड़ा भाग आजकल इस आभाषी माध्यम मोबाइल इंटरनेट से कर रहें हैं और नकदी कि जगह वर्चुअल वैलट रखने लगे हैं.

आर्थिक विशेषज्ञ पंकज जायसवाल के मुताबिक, ''आज भी कई लोगों के पास बैंकिंग सुविधा नहीं है लेकिन उन लोगों की संख्या अधिक है जिनके पास इंटरनेट के साथ सेल फोन है और यह इंटरनेट के माध्यम से व्यापार नहीं कर सकते. मोबाइल इंटरनेट, लॉयल्टी पॉइंट, रिवार्ड पॉइंट और वैलट की विचारधारा ने बिटकॉइन कि विचारधारा को इन्फ्रा सपोर्ट किया है क्योंकि इसने राज्य प्रतिष्ठान कि अनिवार्य मान्यता को हटा कर सिर्फ एक सूत्र वाक्य को पकड़ा है वह है जन स्वीकार्यता और हमें ले गया है उस दौर में जब विनिमय के लिए मानवों ने देश कि सीमाओं के रूप में बड़ी रेखाएं नहीं खींची थी. बिना राज्य प्रतिष्ठान कि गारंटी, केन्द्रीय बैंक के नियमन के भी आप आभाषी दुनिया में बिटकॉइन की वजह से लेन देन कर सकते हैं क्योंकि बिटकॉइन पर किसी व्यक्ति विशेष सरकार या कंपनी का कोई स्वामित्व नहीं होता है."

बिटकॉइन करेंसी पर कोई भी सेंट्रलाइज कंट्रोलिंग अथॉरिटी नहीं है. आज बिटकॉइन काफी पॉपुलर इसलिए है क्योंकि इसे मुद्रा शक्ति उन हजारों लोगों से मिलती है जिनके पास विशेष कंप्यूटर है जो नेटवर्क को इतना शक्ति संपन्न बनाते हैं कि नेट पर विनिमय सुरक्षित हो और लेनदेन की जांच करते रहते हैं, इस प्रक्रिया को माइनिंग कहा जाता है. बिटकॉइन के पूरे सौदे की चेन को आप पूरी निजता बनाए हुए देख सकते हैं.

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आर्थिक विशेषज्ञ पंकज जायसवाल की क्या है राय?

आर्थिक विशेषज्ञ पंकज जायसवाल के मुताबिक, ''आज के राष्ट्र राज्य कि अवधारणा में बिटकॉइन एक नई और बड़ी चुनौती है. यह एक नई आभाषी दुनिया का निर्माण कर रही है, उस आभाषी दुनिया कि करेंसी का निर्माण कर रही है. अब किसी देश के नागरिकों को किसी देश आधुनिक दुनिया में मुद्रा विनिमय के मान्यता प्राप्त करेंसी को संग्रहfत करने और लेन देन कि जरूरत नहीं है. इस आभाषी दुनिया कि इस आभाषी करेंसी पे न तो राज्य का नियमन है और ना ही ईस पे राज्य का कानून काम कर पा रहा है. यह पूरी तरह पीयर टू पीयर अवधारणा पे काम कर रहा है, जहां राज्य का हस्तक्षेप नहीं है.

आज की यह आधुनिक करेंसी हमें मानवीय सभ्यता के उस शुरुआती दौर में ले जा रही है जब मानवों के विकास एवं सुखमय जीवन के राज्य कि स्थापना हुई थी और राज्य का नियंत्रण जनता पे पूरी तरह स्थापित हो पाया था और कर भार लगाने का एक आधार मुद्रा का जन्म हुआ था. बिटकॉइन का प्रचलन केवल राष्ट्र कि भूमिका और उसके राष्ट्रवाद को ही नहीं खत्म कर रहा है यह उस राज्य के द्वारा लगाए जाने वाले कर के बेस को भी खत्म कर दे रहा है, और यह आगे चल के ब्लैक मनी का बहुत बड़ा हथियार बन सकता है. मानव सभ्यता के बड़े दुश्मन आतंकवादी, ड्रग माफिया एवं तस्कर इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कर सकते हैं.'

जब तक आभाषी दुनिया लोगों को अपनी गिरफ्त में लेकर एक नई दुनिया, एक नया कानून और एक नई सीमा रेखा को स्थापित करे पूरी दुनिया को इसपर शोध एवं चिंतन करने की जरूरत है ताकि इसका मानव हित में कैसे इस्तेमाल किया जा सके और इसे ब्लैक मनी और माफिया के इस्तेमाल से बचाया जा सके.

Published at : 04 Mar 2020 02:08 PM (IST) Tags: Pankaj Jaiswal virtual currency Bitcoin Cryptocurrency हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi

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भारतीय मुद्रा का इतिहास (History of Indian currency)

अगर भारतीय मुद्राओं के इतिहास (History of Indian currency) पर गौर करें तो पता चलता है कि भारत में अलग-अलग समय में अलग-अलग मुद्राएं प्रचलन में रही। ढेर सारी मुद्राओं को चलन आजकल ख़त्म हो गया है। भले ये मुद्राएं इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं, लेकिन उन मुद्राओं से जुड़ी या उन पर आधारित लोकोक्तियां और कहावतें आज भी हमारे समाज में प्रचलित हैं। हम अक्सर लोगों के कहते हुए सुनते हैं- मेरा पास फूटी कौड़ी भी नहीं है, मैं तुमको फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा, वह धेले का भी काम नहीं करता, चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए, वह आधुनिक दुनिया में मुद्रा विनिमय पाई-पाई का हिसाब रखता है और वह सोलह आने सच बोलता है। यहां फूटी कौड़ी, कौड़ी, धेला, आधुनिक दुनिया में मुद्रा विनिमय दमड़ी, पाई और आना मुद्राएं हैं, जो अतीतकालीन भारत में लेन-देन के लिए इस्तेमाल हुआ करती थीं। इसी तरह एक और मुद्रा थी खोटा सिक्का। उससे भी जुड़ी कहावत है, वह खोटा सिक्का निकल गया।

भारतीय मुद्रा का इतिहास बहुत पुराना है। मानव सभ्यता के विकास के प्रारंभिक चरण में वस्तु विनिमय चलता आधुनिक दुनिया में मुद्रा विनिमय था लेकिन बाद में लोगों की ज़रूरतें बढ़ी और वस्तु विनिमय से कठिनाइयां पैदा होने लगीं जिसके कारण कौड़ियों से व्यापार आरंभ हुआ जो बाद में सिक्कों में बदल गया। शेर शाह सूरी से लेकर आज तक भारतीय मुद्रा कैसे शुरू हुई, इसके बारे में कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने 1540-45 के बीच चांदी के सिक्कों की मुद्रा चलाई। जो मुग़ल शासन में भी चलती रही। भारतीय मुद्राओं को समय के अनुसार विभिन्न प्रकार और नामों से जाना जाता रहा है। सबसे पहले प्राचीन भारतीय मुद्रा फूटी कौड़ी से कौड़ी, कौड़ी से दमड़ी, दमड़ी से धेला, धेला से पाई, पाई से पैसा, पैसा से आना, आना से रुपया बना।

यहां फूटी कौड़ी मतलब खेलने वाली सिपी कौड़ी है, जो कभी भारतीय मुद्रा हुआ करती थी। दरअसल, पहले लोग फूटी कौड़ी और कौड़ी में ही लेनदेन किया करते थे। तब 3 फूटी कौड़ी 1 कौड़ी के बरार होती थी। उसके बाद कौड़ी से दमड़ी, दमड़ी से धेला और धेला से पाई का दौर आया। 10 कौड़ी का मूल्य 1 दमड़ी होती था और 2 दमड़ी की कीमत 1 धेला हुआ करता था, जबकि 2 धेला 3 पाई के बराबर होता था। पाई एक तरह से पैसा ही था क्योंकि 3 पाई 1 पैसे के बराबर था और 4 पैसा 1 आना होता था। चवन्नी यानी 25 पैसे, अठन्नी यानी पचास पैसे और रुपया यानी 100 पैसे जैसी मुद्राएं इस सदी के आरंभ में प्रचलित थीं। कहने का मतलब आज के एक रुपया 256 दमड़ी या 192 पाई या 128 धेला या 16 आने के बराबर होता था। यानी चार चवन्नी या फिर दो अठन्नी का 16 आना होता था। यह परिपाटी इस आधुनिक दौर में भी प्रचलित है। हालांकि अब दुनिया के बाज़ार में डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड जैसे डिजिटल पेमेंट के साधन आ गए हैं। लेकिन ये भी सारा लेन-देन रुपए में ही करते हैं।

दमड़ी, धेला और पाई का प्रचलन तो बहुत पहले ख़त्म हो गया था, लेकिन उन्नसवीं सदी के उत्तरार्ध तक आना और पैसे प्रचलन में थे। तब एक रुपए में 16 आने और 64 पैसे होते थे। 64 पैसे वाला रुपया 1957 तक प्रचलन में रहा। बच्चों को मेला देखने जाने के लिए एक पैसे, दो पैसे, पांच पैसे या दस पैसे मिलते थे। रईस घर के बच्चेों को चार आने भी मिल जाते थे। जिस लड़के या लड़की को मेला देखने के लिए चार आने मिल जाते थे। वह मेले में खूब जलेबी खाता था या खिलौने खरीद लेता था। ऐसे में जिसे अठन्नी मिल जाता था जो उसकी शान बढ़ जाती थी। बहरहाल, अठन्नी जेब में रखने के बाद वह लड़का अपने आप को बादशाह समझने लगता था, क्योंकि उसके साथ मेला देखने जाने वालों को पांच पैसे, दस पैसे और अधिक से अधिक चार आने यानी चवन्नी ही मिलती थी। तब बच्चे पैसे बचा गुल्लख में कभी 1 पैसे, कभी 2 पैसे, कभी 5, कभी 10, कभी 20, गुल्लख में जमा करते थे। कभी-कभी 25, 50 पैसे और 1 रुपए के सिक्के भी मिल जाते थे तो उन्हें भी गुल्लख में इकट्ठा कर लिया करते थे।

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