अनेक शब्दों के लिए एक शब्द:-
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भाषा की सुदृढ़ता, भावों की गम्भीरता और चुस्त शैली के लिए यह आवश्यक है कि लेखक शब्दों (पदों) के प्रयोग में संयम से काम ले, ताकि वह विस्तृत विचारों या भावों को थोड़े-से-थोड़े शब्दों में व्यक्त कर सके। समास, तद्धित और कृदन्त वाक्यांश या वाक्य एक शब्द या पद के रूप में संक्षिप्त किये जा सकते है। ऐसी हालत में मूल वाक्यांश या वाक्य के शब्दों के अनुसार ही एक शब्द या पद का निर्माण होना चाहिए।
दूसरी बात यह कि वाक्यांश को संक्षेप में सामासिक पद का भी रूप दिया जाता है। कुछ ऐसे लाक्षणिक पद या शब्द भी है, जो अपने में पूरे एक वाक्य या वाक्यांश का अर्थ रखते है। भाषा में कई शब्दों के स्थान पर एक शब्द बोल कर हम भाषा को प्रभावशाली एवं आकर्षक बनाते है।
खेती. टमाटर और गोभी के इतने भाव से किसान दुखी, ये उठा रहे कदम
छिंदवाड़ा.ठंड में अत्यधिक उत्पादन से गुरैया सब्जी मण्डी में टमाटर के भाव 90 पैसे और फूलगोभी-पत्ता गोभी के भाव एक रुपए किलो पहुंच गए है। इससे स्वाभाविक और समय मूल्य किसानों की लागत निकलना मुश्किल हो रही है। हालात यह है कि मंडी में सब्जियां फेंकने और खेतों में रोटावेटर चलाने की नौबत बन गई है।
सब्जी मण्डी में मंगलवार को टमाटर, गोभी की करीब 2 हजार क्विंटल से अधिक आवक रही। किसान जब सब्जी व्यापारियों के पास पहुंचे तो उनसे एक रुपए से कम भाव मिला। इससे उपज की लागत न निकलती देख सिर पीट लिया। जैसे-तैसे 30-40 रुपए कैरेट के भाव से बेचकर लौट गए। किसानों की मानें तो इस समय टमाटर-गोभी का बंपर उत्पादन हुआ है। यह स्थिति सभी राज्यों में होने से निर्यात नहीं हो पा रहा है। कुछ किसान यह मान रहे है कि हाल ही में आसमान में बादल होने से तापमान जरूरत से ज्यादा बढ़ा। इससे टमाटर, गोभी समयचक्र से पहले ही परिपक्व हो गए। इससे यह हालात बने।
इस संबंध में आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र के सहसंचालक डॉ.विजय पराडकर का कहना है कि आसमान में बादलों की मौजूदगी से तापमान बढऩा स्वाभाविक है लेकिन इसे पूरी तरह अत्यधिक उत्पादन के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। यह किसानों की मेहनत का फल है।
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दस हजार हेक्टेयर का टमाटर, गोभी का रकबा
जिले में टमाटर, फूल गोभी, पत्ता गोभी समेत अन्य सब्जियों का रकबा करीब दस हजार हेक्टेयर बताया जाता है। टमाटर, गोभी खासकर गुरैया, बीसापुर, बदनूर, रिधोरा, उमरेठ, गांगीवाड़ा, गुरैया, मोहगांव, स्वाभाविक और समय मूल्य पोआमा, कुण्डालीकलां, झिरलिंगा, भैंसादण्ड, थुनिया,सांवरी, परसगांव, शिकारपुर, कामठी, राजेगांव, सिंगोड़ी, बनगांव समेत आसपास के इलाकों में हो रही है।
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खेत में नहीं तोड़े टमाटर, गोभी पर चलाया रोटावेटर
ग्राम कुण्डालीकलां के किसान संदीप ठाकरे ने खेत में टमाटर और गोभी लगाई थी। हालात यह हो गए कि सब्जी मंडी में एक रुपए किलो से कम भाव पर खेत में टमाटर नहीं तोड़ पा रहे और फूलगोभी पर रोटावेटर चलाकर उसे नष्ट करना पड़ा। संदीप ने बताया कि एक कैरेट टमाटर सब्जी मण्डी में ले जाने पर 20 रुपए ऑटो खर्च आता है। इसकी तुड़ाई की मजदूरी अलग इतनी ही बैठती है। टमाटर के भाव 30 रुपए कैरेट है। ऐसे में लागत भी नहीं निकल पा रही है। भारत कृषक समाज के जिलाध्यक्ष चौधरी पुष्पेन्द्र सिंह का कहना है कि कृषि विभाग के मैदानी अधिकारी-कर्मचारियों को किसानों को अलग-अलग सब्जियां लेने प्रेरित करना चाहिए। जागरुकता के अभाव में किसान एकल फसल पर चले गए। इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ रहा है। हालात यह है कि रिंग रोड के किनारे किसान टमाटर फेंक रहे हैं। रोटावेटर भी चलाने की नौबत बन रही है। जिला पंचायत उपाध्यक्ष अमित सक्सेना ने बताया कि बनगांव समेत पूरे जिले में टमाटर और गोभी में किसानों को नुकसान उठाना पड़ा है लेकिन राज्य सरकार ने कोई सहायता की घोषणा नहीं की है। इसके साथ ही अधिक उत्पादन पर उसे आसपास के जिलों में भेजने की नीति भी नहीं है।
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अत्यधिक उत्पादन से मण्डी में गिर गए भाव
गुरैया सब्जी मण्डी में टमाटर 90 पैसे और फूलगोभी-पत्ता गोभी एक रुपए किलो हो गई है तो दूसरी सब्जी पालक, मेथी, बैगन, लौकी आदि 2 से 10 रुपए किलो तक नीचे आ गई है। टमाटर, गोभी तो कई बार किसान छोड़कर जा रहे हैं। इन्हें कचरे के ढेर में फेंकना पड़ रहा है। यूनियन अध्यक्ष राजा पटेल का कहना है कि छिंदवाड़ा के साथ मप्र, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में टमाटर, फूल गोभी, पत्त्ता गोभी समेत अन्य फसल की पैदावार अधिक होने से बाहर भेजने की स्थिति नहीं बन पा रही है। इससे भाव नहीं मिल पा रहे हैं।
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रैदास / परिचय
संत कुलभूषण कवि रैदास उन महान् सन्तों में अग्रणी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। मधुर एवं सहज संत रैदास की वाणी ज्ञानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी एवं प्रेमाश्रयी शाखाओं के मध्य सेतु की तरह है।
प्राचीनकाल से ही भारत में विभिन्न धर्मों तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे हैं। इन सबमें मेल-जोल और भाईचारा बढ़ाने के लिए सन्तों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे सन्तों में स्वाभाविक और समय मूल्य रैदास का नाम अग्रगण्य है। वे सन्त कबीर के गुरूभाई थे क्योंकि उनके भी गुरु स्वामी रामानन्द थे।
विषय सूची
लगभग छ: सौ वर्ष पहले भारतीय समाज अनेक बुराइयों से ग्रस्त था। उसी समय रैदास जैसे समाज-सुधारक सन्तों का प्रादुर्भाव हुआ। रैदास का जन्म काशी में चर्मकार कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम रग्घु और माता का नाम घुरविनिया बताया जाता है। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे।
उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे।
रैदास के समय में स्वामी रामानन्द काशी के बहुत प्रसिद्ध प्रतिष्ठित सन्त थे। रैदास उनकी शिष्य-मण्डली के महत्वपूर्ण सदस्य थे।
प्रारम्भ से ही रैदास बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रैदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से अलग कर दिया। रैदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग झोपड़ी बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।
स्वभाव
उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से समय तथा वचन के पालन सम्बन्धी उनके गुणों का पता चलता है। एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का मैंने वचन दे रखा है। यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होगा। गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा ? मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। कहा जाता है कि इस स्वाभाविक और समय मूल्य प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि - मन चंगा तो कठौती में गंगा।
रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा। वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
उनका विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
उनके विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।
रैदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का सन्तोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वत: उनके अनुयायी बन जाते थे।
उनकी वाणी का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके प्रति श्रद्धालु बन गये। कहा जाता है कि मीराबाई उनकी भक्ति-भावना से बहुत प्रभावित हुईं और उनकी शिष्या बन गयी थीं।
वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।
आज भी सन्त रैदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण सन्त रैदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं।
अपने काम में निपुण होते हैं धनु राशि और मूल नक्षत्र में जन्मे लोग, मुकेश अंबानी का भी यही है जन्म नक्षत्र
Mool Nakshatra: मूल नक्षत्र के लोग हमेशा अपने लक्ष्य को लेकर केंद्रित रहते हैं और जब तक इन्हें लक्ष्य नहीं मिल जाता तब कर ये लोग राहत की सांस नहीं लेते।
मूल नक्षत्र के जातकों का स्वभाव जिद्दी होता है। ये लोग अपना हर कार्य ईमानदारी के साथ पूरा करते हैं।
मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं। इस नक्षत्र का स्वामी केतु है। मान्यता है कि इस नक्षत्र में जन्मे बच्चों को कुछ समय तक परेशानियां होती हैं। जिस कारण ग्रह-नक्षत्रों की शांति के लिए पूजा की जाती है। नक्षत्र मंडल में इस नक्षत्र का स्थान 19वां है। मूल नक्षत्र के जातकों का स्वभाव जिद्दी होता है। ये लोग अपना हर कार्य ईमानदारी के साथ पूरा करते हैं। एशिया के सबसे अमीर शख्स मुकेश अंबानी भी धनु राशि और मूल नक्षत्र में जन्मे हैं।
मूल नक्षत्र के लोग हमेशा अपने लक्ष्य को लेकर केंद्रित रहते हैं और जब तक इन्हें लक्ष्य नहीं मिल जाता तब कर ये लोग राहत की सांस नहीं लेते। इन लोगों को विचार काफी दृढ़ होते हैं और निर्णय लेने की इनमें अच्छी क्षमता होती है। ये पढ़ने लिखने में बुद्धिमान और भविष्य को लेकर हमेशा गंभीर रहते हैं। इन्हें कम उम्र में स्वाभाविक और समय मूल्य ही इस बात का पता चल जाता है कि इन्हें आगे चलकर क्या करना है।
हर चीज का इनके पास पहले से ही प्लान रहता है। ये मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। ये खोजी बुद्धि के होते हैं। इन्हें हर चीज की जानकारी रहती है। इनका स्वभाव दयालु होता है जिस कारण कई लोग इनका फायदा भी उठा लेते हैं। ये अपने कार्य में कुशल और निपुण होते हैं। कार्यस्थल पर ये हमेशा आगे रहते हैं। ये खुद का व्यवसाय करना ज्यादा पसंद करते हैं। चुनौतियों से लड़ना इन्हें पसंद होता है। दूसरों की मदद के लिए ये लोग हमेशा तैयार रहते हैं। यह भी पढ़ें- मेष राशि और भरणी नक्षत्र में जन्मे हैं गृह मंत्री अमित शाह, अपनी धुन के पक्के होते हैं इस नक्षत्र में जन्मे लोग
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मूल नक्षत्र में जन्मे लोग अपने परिवार की हर जरूरत को पूरा करते हैं और माता पिता की हर बात मानते हैं। स्वाभाविक और समय मूल्य इनके मित्र काफी कम होते हैं और उनके लिए ये कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। मूल नक्षत्र वाले व्यक्ति यश, प्रतिभा, धन सब प्राप्त करने वाले होते हैं। इन लोगों पर भगवान की विशेष कृपा रहती है। इस नक्षत्र के जन्मे व्यक्ति कर्मठ व सक्रिय होते हैं। अपने विचारों को क्रियान्वित करने में ये देरी नहीं करते। यह भी पढ़ें- इस यंत्र को तिजोरी या अलमारी में रखने से धन-वैभव में हो सकती है बढ़ोतरी, ऐसी है मान्यता
Manav Mool Pravrati Hindi (मानव की मूल प्रवृति)
Manav ki mool pravriti
Manav Mool Pravrati Hindi/ स्वाभाविक और समय मूल्य Manav ki Mool Pravrati
मानव जो कार्य बिना सीखे हुए जन्मजात या प्राकृतिक प्रेरणाओं के आधार पर करता है वह मानव की मूल प्रवृत्ति कहलाती है. या दूसरे शब्दों में कहें तो-
“मानव की मूल प्रवृत्ति वह क्रिया है जो जन्मजात होती है। यह एक आन्तरिक बल की तरह है जो हमारे आवश्यकता की पूर्ति के लिये आवश्यक होती है।”
उदाहरण के लिए: स्वाभाविक और समय मूल्य भूख ,प्यास, दुख, सुख, गुस्सा, आदि।
मानव की मूल प्रवृत्तियां 14 होती हैं. मूल प्रवृत्तियों का सिद्धांत विलियम मैकडूगल (William McDougall) ने दिया था. प्रत्येक मूल प्रवृत्ति से एक संवेग संबंधित होता है. संवेग की उत्पत्ति मूल प्रवृत्तियों से हुई है.
संवेग मतलब (Emotion): E+ Motion यानि अन्दर के भाव जब बाहर की तरफ गति करते हैं यानि अन्दर के भाव का बाहर प्रक्त होना ही संवेग या emotion है.
जन्म के समय बालक के अंदर तीन संवेग होते हैं:
भय, क्रोध और प्रेम
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मूल प्रवृत्तियां और उनके संवेग
मूल प्रवृत्ति | संवेग |
पलायन (भागना) | भय |
निवृति (अप्रियता) | घृणा |
युयुत्सा (युद्ध प्रियता) | क्रोध |
शिशु रक्षा | वात्सल्य/ प्रेम |
संवेदनशीलता | कष्ट |
काम प्रवृति | कामुकता |
जिज्ञासा | आश्चर्य |
आत्महीनता | अधीनता की भावना |
आत्म प्रदर्शन | श्रेष्ठता की भावना |
सामूहिकता | एकाकीपन |
भोजन तलाश | भूख |
संचय | अधिकार की भावना |
श्रचना | रचना का आनंद ले |
हास | आमोद |
सहज एवं मूल प्रवृत्ति
मनुष्यों की तरह पशुओं में भी जन्म से ही अनेक प्रकार के जटिल कार्य करने की क्षमता होती है। ये कार्य जीवनयापन के निमित्त अत्यंत आवश्यक होते हैं. जैसे: शिशु को स्तनपान कराना, संतान के हितगत पशु जाति का व्यवहार, चिड़िया की घोंसला बनाने की प्रवृत्ति, इत्यादि।
ऐसी प्रवृत्तियाँ भी जन्मजात प्रकृति का अंग होती हैं। यदि चौपाए भागते-दौड़ते हैं, जो पक्षी उड़ते फिरते हैं। जहाँ मधुमक्खी सुगंधित पुष्पों पर मंडराती है वहाँ छिपकली कीट, फतिंगों का शिकार करती है। ऐसी प्राकृतिक जीवनोपयोगी वृत्तियों को सहज प्रवृत्ति, वृत्ति व्यवहार (इंस्टिंक्ट) अथवा जातिगत प्रकृति भी कह सकते हैं।
पशुओं का प्रत्येक आचरण, मूल रूप से उसकी विशेष प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्ति से ही विकसित होता है। एक बैल या उसका बछड़ा, घासफूस, पत्ते, स्वाभाविक और समय मूल्य तृण आदि से पेट भरता है। परंतु एक उच्च वर्ग का सभ्य आदमी तथा उसके बच्चे विशेष ढंग से पकवान बनवाकर और सही ढंग से बैठकर बर्तन आदि में भोजन करते हैं। सभ्यता के कृत्रिम आवरण में हम प्रकृति प्रदत्त मूल प्रवृत्ति की एक धुँधली सी झलक देख सकते हैं। Manav Mool Pravrati Hindi
विलियम मैक्डूगल के अनुसार प्रत्येक मूल प्रवृत्ति के तीन स्वाभाविक और समय मूल्य अंग होते हैं-
1. एक विशेष उद्दीपक परिस्थिति
2. एक विशिष्ट रसना अथवा संवेग और
3. एक विशिष्ट प्रतिक्रिया क्रम।
इनमें से संयोगवश उद्दीपक परिस्थिति तथा अनुकूल कार्य के क्रम में अत्यधिक परिवर्तन होता है। सामान्यत: कष्टप्रद अपमानजनक व दु:साध्य परिस्थिति में मनुष्य क्रोधित होकर प्रतिकार करता है। किंतु जहाँ बच्चा खिलौने से रुष्ट होकर उसे तोड़ने का प्रयास करता है, वहाँ एक वयस्क स्वदेशाभिमान के विरुद्ध विचार सुनकर घोर प्रतिकार करता है। जहाँ बच्चे का प्रतिकार लात, धूँसा तथा दाँत आदि का व्यवहार करता है, वहाँ वयस्क का क्रोध अपवाद, सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक हानि तथा अद्भुत भौतिक रासायनिक अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग करता है। किंतु क्रोध का अनुभव तो सब परिस्थितियों में एक समान रहता है।
प्रा. मैक्डूगल ने पशु वर्ग के विकास, तथा संवेगों के निश्चित रूप की कसौटी से एक मूल प्रवृत्तियों की सूची भी बनाई है। संवेग अथवा भय, क्रोध आदि को ही मुख्य मानकर तदनुसार मूल प्रवृत्तियों का नाम, स्वभाव आदि का वर्णन किया है। उनकी सूची बहुत लोकप्रिय है और उसकी ख्याति प्राय: अनेक आधुनिक समाजशास्त्रों में मिलती है। परंतु वर्तमानकाल में उसका मान कुछ घट गया है।
डॉ॰ वाटसन ने अस्पताल में सद्य:जात शिशुओं की परीक्षा की तो उन्हें केवल क्रोध, भय और काम वृत्तियों का ही तथ्य मिला। एक जापानी वैज्ञानिक डॉ॰ कूओं ने यह पाया है कि सभी बिल्लियाँ न तो चूहों को प्रकृत स्वभाव से मारती हैं और न ही उनकी हत्या करके खाती हैं। उचित सीख से तो बिल्लियों की मूल प्रवृत्ति में इतना अधिक विकार आ सकता है कि चूहेमार जाति की बिल्ली का बच्चा, बड़ा होकर भी चूहे से डरने लगता है। अत: अब ऐसा समझते हैं कि जो वर्णन मैक्डूगल ने किया है वह अत्यधिक सरल है। Manav Mool Pravrati Hindi
आधुनिक मनोवैज्ञानिक स्थिति को सरलतम बनाकर समझने के निमित्त, मानसिक उद्देश्यपूर्ति की उलझन से बचकर, शरीर के सूक्ष्म क्रियाव्यवहार को ही मूल प्रकृति मानने लगे हैं। उन्हें दैहिक तंतुओं के मूल गुण प्रकृति मर्यादित तनाव (Tissue Tension) में ही मूल प्रवृत्ति का विश्वास होता है। जब उद्दीपक वा परिस्थिति विशेष के कारण देह के भिन्न तंतुओं (रेशों) में तनाव बढ़ता है, तो उस तनाव के घटाने के हिव एक मूल वृत्ति सजग हो जाती है और इसकी प्रेरणा से जीव अनेक प्रकार की क्रियाएँ आरंभ करता है। जब उचित कार्य द्वारा उस दैहिक तंतु तनाव में यथेष्ट ढिलाव हो जाता है, तब तत्संबंधित मूल वृत्ति तथा उससे उत्पन्न प्रेरणा भी शांत हो जाती है। दैहिक तंतुओं का एक गुण और है कि विशेष क्रिया करते करते थक जाने पर विश्राम की प्रवृत्ति होती है। प्रत्येक दैहिक तथा मनोदैहिक क्रिया में न्यूनाधिक थकान तथा विश्राम का धर्म देखा जाता है। अत: निद्रा को यह आहार, भय, मैथुन आदि से सूक्ष्म कूठरस्थ वृत्ति मानते हैं। अर्थात आधुनिक मत केवल दो प्रकार की मूल प्रवृत्ति मानने का है-
(1) दैहिक तंतु तनाव को घटाने की प्रवृत्ति (या अपनी मर्यादा बनाए रखने की प्रवृति);
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