विपणन का अर्थ, परिभाषा, क्षेत्र, महत्व
vipnan ka arth paribhasha kshara mahatva;विपणन के वास्तविक अर्थ से अधिकांश व्यक्ति परिचित है तो वही दुसरी और विपणन से बहुत से लोग अपरिचित है विपणन के अन्तर्गत वस्तु के क्रय एवं विक्रय के पहले एवं बाद की सभी क्रयिाओं को शामिल किया जाता है। साधारण शब्दों में किसी वस्तु के क्रय व विक्रय को विपणन कहा जाता है।
विपणन की परिभाषा (vipnan ki paribhasha)
विपणन की परीभाषाएं इस प्रकार से है--
क्लार्क एवं क्लार्क के अनुसार," विपणन में वे सभी प्रयत्न सम्मिलित है जो वस्तु एवं सेवाओं के स्वामित्व हस्तांतरण एवं उनके भौतिक वितरण कार्य में सहायक होते है।"
प्रों पाइल के शब्दों में," विपणन में क्रय एवं विक्रय दोंनों क्रियाए शामिल है।"
फिलिप्स कोटलर के शब्दों में," विपणन मानवीय क्रियाओं के उस समूह को कहते है जो विनिमय को सरल उपयोगी और लाभप्रद बनाती है।"
पॅाल मजूर के अनुसार," विपणन का अर्थ समाज को जिवन स्तर प्रदान करना है। विपणन की यह परीभाषा सरल एवं सामाजिक संदर्भो में विपणन को पारिभाषित करती है साथ ही उपभोक्ता प्रधान भी है एवं सामाजिक संतुष्टि को विपणन का प्रमूख कार्य मानती है इस प्रकार इस परीभाषा में विपणन के विस्तृत अर्थ को व्यक्त करने की क्षमता है हालाकि यह परीभाषा विपणन के क्रार्यकलापों की प्रकृति को स्पष्ट नही करती।"
व्हीलर के अनुसार," विपणन उन समस्त संसाधनों एवं क्रियाओं से संबंधित है जिनसे वस्तु एवं सेवाए उत्पादन से उपभोक्ता तक पहूचती है। व्हीलर ने काफी समय तक अपने द्वारा दी गई परीभाषा में समेटने का बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ प्रयास किया है किन्तु इसके के बाद भी यह परीभाषा विपणन की उपयुक्त परीभाषा नही कही जा सकती है।"
अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन समिति के शब्दों में," विपणन उन व्यावसायिक क्रियाओं का निष्पादन है जो की वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह को उत्पादन से उपभोक्ताओं तक अथवा उपयोगकर्ताओं की और निर्देशित करता है।"
विपणन की यह परीभाषा एक लंबी अवधी तक प्रचलित रही एवं इसे मान्यता भी मिली किंतु इस परीभाषा को भी संकीर्ण एवं प्राचीन वर्ग के अंतर्गत ही रखा गया क्योंकि यह परीभाषा ग्राहकोन्मूखी न होकर उत्पादोंन्मूखी है। यह परीभाषा बाजार अनुसंधान को विपणन का हिस्सा नही मानती।
विपणन का क्षेत्र
विपणन के क्षेत्र को संकुचति व विस्तृत दोंनो अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है। वास्तव में संकुचति अर्थ विपणन संबंधी पुरानी विचार धारा का प्रतीक है संकुचित अर्थ में विपणन क्रिया में वस्तु या सेवा को उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुचाने में की जाती है इन विपणन क्रियाओं को वितरण संबंधी क्रिया कहते है। जबकि वही दुसरी और विस्तृत अर्थ आधुनिक विचारधारा का प्रतीक है विपणन के बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ विस्तृत क्षेत्र के अनुसार वस्तु का उत्पादन पूर्ण करने के साथ प्रारंभ नही होती है न ही वस्तु के अंतिम बिक्री के साथ समाप्त हो जाती है अपितु विक्रय के बाद भी विपणन क्रियाए सेवा के रूप में पूर्ण की जाती है ।
विपणन के क्षेत्र की निम्न क्रियाएं इस प्रकार से है--
1. ग्राहक सम्बन्धी निर्णय एवं अनुसंधान
आज के युग में ग्राहक को बाजार का राजा माना जाता है आज के युग में हर उत्पादक और व्यापारि यह जानना चाहता है कि ग्राहकों कि रूचि का स्तर क्या है ग्राहकों कि मूल्य चुकाने कि क्षमता क्या है इन सभी बातों का ध्यान रखकर उत्पादक वस्तु का निमार्ण कर ग्राहकों तक पहुंचाकर उनकी संतुष्टि के लिए लाभ पाना चाहता है।
2. वस्तु के संबंध में विभिन्न बातों का निर्णय लेना
उत्पादक को वस्तु के निमार्ण से पहले विभिन्न बातों के निर्णय लेने होते है बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ जैसे वस्तु का आकार रंग पैकिंग डिजाइन क्या होगा? यह भी विपणन क्षेत्र का प्रमुख अंग है।
उत्पादन एवं उपभोग केन्द्रों के मध्य भैागोंलिक दूरी होती है जिसे कम करने में परिवहन ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है परिवहन का काम वस्तु को उत्पादन स्थान उपभोक्ता तक पहुचाना है परिवहन ने वृहत उत्पादन विशाल वितरण एवं विश्ष्टिीकरण को संभव बनाया है आज के युग में परिवहन के बिना विपणन कि कल्पना भी नही कि जा सकती है। जैसे रेल ट्रक वायुयान डाक सेवा के द्वारा वस्तुओं को एक स्थान से दुसरे स्थान तक पहुंचाया जा सकता है।
4. मूल्य नीति सम्बन्धी निर्णय
विपणन क्रिया में हर उत्पादक और व्यापारिक संस्थान को वस्तु का विपणन करने से पहले एक निणर्य यह भी लेना होता है कि उनकी वस्तु कि कीमत क्या होगी वस्तु कि कीमत तय करते समय ग्राहक कि देय क्षमता तथा वस्तु कि लागत को ध्यान में रखना पडता है।
विपणन क्रियाओं में एक क्रिया यह भी है उत्पादकों को उनके उत्पादन का उचित मूल्य मिल सके इस के लिए भण्डारण कि बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ सुविधा का होना आवश्यक है। भण्डारण कि सुविधा न होने के करण फल दूध शीघ्र खराब होने वाली वस्तुएं मांग व पूर्ति के अनुसार अधिक कम दाम मे बिकती है विपणन कार्य में भण्डारण क्रिया समय उपयोगीता का सृजन करती है।
विपणन का महत्व
vipnan ka mahatva;पहले के समय में मानव की आवश्यकता कम थी मानव अपनी आवश्यकता की वस्तु को स्वयं तैयार करते थे। धीरे-धीरे मानव सुविधाभोंगी होता गया आज के युग में मानव कि आवश्यकता अनेक एवं विविधा पूर्ण है आज के युग में मानव आवश्यकताओं कि पूर्ति के लिए विशाल पैमानें पर उत्पादन कि गतिविधियों में संलगन है। इसी का परिणाम है कि विपणन गतिविधियों का महत्व बढ़ता ही जा हा है। विपणन के महत्व को निम्म शीर्षकों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है--
1. अनेक वस्तुयें उपयोग के लिए उपलब्ध है
आज के युग में विपणन का क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय हो गया है जिसके कारण हमें विदेशों में निर्मित वस्तुयें उपयोग के लिए उपलब्ध हो जाती है ।
2. मांग के आधार पर सुचनाएं प्राप्त करना
विपणन के अध्ययन से हमे पता चलता है कि उत्पादक के बदलती हुए मांग एवं परिस्थितियों के बारे में सुचनाएं प्राप्त होती है।
3. अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना
विपणन के अंतर्गत उत्पाद कि जानकारी उपभोक्ता के पास पहुंचाकर उसके विक्रय को निश्चित किया जाता है यदि विपणन गतिविधियों कें माध्यम से वस्तु विक्रय हेतु कार्यवाही न कि जाए इस कारण यदि उत्पादन विक्रय न हो सके तो इस से अर्थव्यवस्था के विकास में दुविधा उत्पन्न हो सकती है इस प्रकार से विपणन अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाएं रखने में अपना योगदान देती है।
4. अनेक व्यक्तियों को रोजगार
विपणन के कारण वस्तुओं का निर्माण होता है जिसके लिए अधिक मात्रा में मजदरों कि आवश्यकता होती है इसी तहत लोगों को रोजगार प्राप्त होता है। इस तरह यह कहा जा सकता है कि विपणन के अंतर्गत रोजगार का सृजन होता है ।
5. अधिक लाभ अर्जित करने में सहायक
विपणन में कोई भी उत्पादक जब किसी वस्तु का उत्पादन करता है तो उसे वस्तु को उपभोक्ता तक पहुचाने में लोगों की मदद लेनी पडती है जैसे मध्यस्थों माल गोंदामों के मालिकों परिवहन व्यापारियों इत्यादि। विपणन के माध्यम से इन सेवाओं कि जानकारी प्राप्त कर ज्यादा लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
बाजार विभक्तिकरण के प्रति वैकल्पिक विपणन बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ नीतियाँ - Alternate Marketing Strategies Towards
बाजार विभक्तिकरण के प्रति वैकल्पिक विपणन नीतियाँ - Alternate Marketing Strategies Towards
Market Segment) हम सभी इस बात से भली-भाँति अवगत हैं कि क्रेताओं बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ में समानता नहीं पायी जाती हैं। अतः क्रेताओं की भिन्नता के अनुसार एक व्यवसायी अपनी विपणन नीति में भी अंतर कर सकता है। बाजार विभक्तिकरण के संदर्भ में एक व्यवसायी के लिए निम्न तीन विपणन नीतियाँ उपलब्ध है
1) अभेदित विपणन नीति (Undifferentiated Marketing Strategy ) इस विपणन नीति के अंतर्गत फर्म एक ही वस्तु प्रस्तुत करती है और एक ही विपणन कार्यक्रम द्वारा सभी क्रेताओं को आकर्षित करने का प्रयास करती है। इस नीति के अंतर्गत ग्राहकों के मध्य अंतर नहीं किया जाता तथा सभी के लिए एक ही कार्यक्रम,
एक ही विज्ञापन माध्यम तथा एक ही ब्राण्ड एवं पैकिंग आदि का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, कोकाकोला अनेक वर्षों तक एक ही स्वाद वाला तथा एक ही बोतल आकार में उपलब्ध रहा। इस नीति के अंतर्गत फर्म बाजार के विभिन्न माँगों को मान्यता न देकर बाजार को संपूर्ण रूप बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ में लेती है। इसमें लोगों की समान आवश्यकताओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है एवं उत्पाद का ऐसा आकार और कार्यक्रम तैयार किया जाता है जो अधिकांश ग्राहकों को अपील करें।
2) भेदित विपणन नीति (Differentiated Marketing Strategy ) – इस नीति के अंतर्गत फर्म बाजार के सभी खण्डो (Segments) को ध्यान में रखकर भिन्न-भिन्न उत्पादों का निर्माण करती हैं।
दूसरे शब्दों में, इसके अंतर्गत बाजार को संपूर्ण रूप से नहीं देखा जाता तथा ग्राहक वर्गों की विशेषताओं के अनुसार उसे विभिन्न खण्डों में विभक्त किया जाता है, तत्पश्चात् सभी खण्डों के लिए अलग-अलग उत्पादों का निर्माण किया जाता है। इस नीति का प्रयोग विक्रय को बढ़ाने तथा प्रत्येक बाजार खण्ड की गहराई तक पहुँचने बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, हिन्दुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड नहाने के साबुन का निर्माण एवं विक्रय अनेक ब्राण्ड नामों से करता है, जैसे लक्स, लाइफबॉय, पीयर्स आदि।
3) संकेन्द्रित विपणन नीति (Concentrated Marketing Strategy ) उपर्युक्त दोनों नीतियों में फर्म द्वारा सम्पूर्ण बाजार पर ध्यान दिया जाता है, परन्तु कुछ फर्मे एक तीसरी नीति प्रयोग करती है,बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ
जिसके अंतर्गत संपूर्ण बाजार के स्थान पर बाजार के किसी एक भाग या कुछ भागों पर संपूर्ण विपणन नीति केन्द्रित की जाती है। यह नीति उस समय अधिक उपयुक्त रहती है, जब फर्म की वित्तीय साधन सीमित हो । दूसरे शब्दों में, बाजार के अनेक भागों में अपनी शक्ति बिखरने के बजाय फर्म कुछ ही क्षेत्रों में अपनी शक्ति को केन्द्रित करती है, जिसमें एक अच्छी बाजार स्थिति प्राप्त की जा सके।
भारत में अनेक संस्थाओं द्वारा इस नीति का पालन किया जा रहा है, जैसे अनेक पुस्तक प्रकाशन सभी विषयों की पुस्तकें प्रकाशित न करके कुछ ही विषयों की पुस्तकों के प्रकाशन का कार्य करते हैं। कुछ प्रकाशन कॉलेज स्तर की पुस्तकें तथा कुछ स्कूल स्तर की पुस्तकों के प्रकाशन का कार्य करते हैं।
उपभोक्ता व्यवहार का महत्व, घटक
उपभोक्ता व्यवहार का महत्व (upbhokta vyavhar ka mahatva)
प्राचीन समय में यह मान्यता थी कि उपभोक्ता एक इच्छाशून्य व्यक्ति है। जिसको कुछ भी वस्तु किसी भी मूल्य पर बेच दी जाती थी। उस समय का बाजार विक्रता बाजार था। उत्पादक जो भी वस्तु बनाता था अनन-फनन में बिक जाती थी पहले वस्तुओं का अभाव था। कन्तिु आज परिस्थिति बिल्कुल अलग है अब विक्रेता/उत्पादक को अपनी वस्तु बाजार में विक्रय के लिए प्रस्तुत करने से पहले उपभोक्ता/क्रेता के व्यवहार का अध्ययन करना पड़ता है।इसका कारण यह भी है की अब क्रेता का बाजार है विक्रता वही वस्तु विक्रय के लिए प्रस्तुत करेगा जो क्रेता को पसंद होगी। इसी प्रकार विक्रता भी वही वस्तु अपनी दुकान पर रखेगा जिन्हे उपभोक्ता खरीद सके। कोई वस्तु जितनी अधिक उपभोक्ता को पसंद होगी वह वस्तु उतनी अधिक बिकेगी। वस्तु जितनी ज्लदी बिकेगी विक्रेता को उतना ही अधिक लाभ प्राप्त होगा।
उपभोक्ता व्यवहार का महत्व इस प्रकार से है--
1. मूल्य नीतियां
मूल्य संबंधी नीतियां और निर्णय भी उपभोक्ता व्यवहार से प्रभावित होते है। यदि उपभोक्ता विवेकीय क्रय प्रेरणाओं से प्रभावित होकर वस्तुएं खरीदता है तब अवश्य ही उन वस्तुओं का मूल्य उचित रखना चाहिए किन्तु भावात्मक प्रेरणा से खरीदी जाने वाली वस्तुओं का मूल्य अधिक रखा जाना चाहिए।
2. विक्रय प्रवर्तन सम्बन्धी नीतियां
वस्तु के विक्रय वृद्धि के लिए विक्रय प्रवर्तन नीति उपभोक्ताओं के क्रय व्यवहार से कुछ सीमा तक प्रभावित होते है और इस प्रकार क्रेता व्यवहार के अध्ययन के बिना विक्रय संवर्द्धन के प्रयास सफल नही हो सकते है क्योंकि वस्तु कौन खरीद रहा है? किसके द्वारा वस्तु खरीदी जा रही है? कहां से खरीद रहा है? और कैसे खरीद रहा है? आदि बातें विक्रय प्रवर्तन व प्रचार के कार्यक्रमों को प्रभावित करती है।
3. उत्पादन में विविधता
इसके के अन्तर्गत उपभोक्ता व्यवहार का ज्ञान होना अतिअवश्यक है यदि उपभोक्ता उत्पाद के किसी विशेष गुण जैसे आकार, शैली से प्रभावित होकर उसे क्रय करता है तब निर्माता को उस आकार का गुण या शैली का अपने उत्पाद में समावेश करना ही चाहिए। इस से यह स्पष्ट होता है कि उपभोक्ता व्यवहार उत्पादन विविधता में अपना महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
4. वितरण स्त्रोतों सम्बन्धी नीतियां
इसके निर्धारण के लिए उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण है यदि कोई वस्तु कम कीमत पर खरीदी जा रही हो तो उस वस्तु की विपणन प्रक्रिया भी सरल व सुविधाजानक होना चाहिए जैसे रोज उपयोग में लई जाने वाली वस्तुएं शक्कर, तेल व चाय आदि। यदि किसी कारण वस वस्तुएं विक्रय के बाद अच्छी सेवा की गारण्टी के आधार पर खरीदी जाती है। तो ऐसी उत्पाद के निर्माता को अपने वितरण स्त्रोत भी इसी प्रकार से चुनने होंगे जो उपभोक्ता को विक्रय के बाद अच्छी सेवा दे सके।
5. गलाकाट प्रतियोगिता
आज के युग में प्रत्येक वस्तु के अनेक विक्रता है यहां वर हर विक्रेता अपनी वस्तुओं को शीघ्र बेचना चाहता है। कुछ विक्रेता अपनी वस्तु को गलाकाट प्रतियोगिता में लागत से कम कीमत पर बेचने के लिए तैयार हो जाते है इस गलाकाट प्रतियोगिता में वही विक्रेता अपने अस्तित्व को बाचये रख सकता है जिसने उपभोक्ता व्यवाहर का अध्ययन किया हो।
6. फैशन में परिवर्तन
आज के इस दौर में फैशन में तेज गति से परविर्तन होते जा रहे है। जिन वस्तुओं को लोग आज पसन्द कर रहे है वह वस्तु कुछ दिन बाद अप्रचलन में आ जाती है इसके बाद उपभोक्ता उन वस्तुओं का त्याग कर देते है। इस स्थिति में विक्रेता को बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ क्रेता की पसन्द का अध्ययन करना परम आवश्यक है और उसी के अनुसार अपने उत्पादन में परिवर्तन करने चाहिए। उदाहरण के लिए अमेरिका में कार का मॉडल एक साल के भीतर ही अप्रचलन में आ जाता है।
उपभोक्ता व्यवहार के घटक (upbhokta vyavhar ke ghatak)
उपभोक्ता व्यवहार के घटक इस प्रकार है--
1. मनावैज्ञानिक घटक
उपभोक्ता व्यवहार के मनोवैज्ञानिक घटक के निम्न प्रकार है-
(अ) आधारभूत आवश्यकताएं
यह वो आवश्यकता है जिन्हें उपभोक्ता सबसे पहले पूरी करने का प्रयास करता है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद ही उसकी निगाह अन्य वस्तुओ व सेवाओं पर पडती है। ए.एच.मैस्लों के अनुसार यह आवश्यकताएं इस प्रकार है--
1. शरीर विज्ञान आवश्यकताएं जिसमें खाना पिना सोना आदि शामिल है
2. सुरक्षा बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ आवश्यकतायें
3. प्रेम आवश्यकतायें
4. समान आवश्यकतायें
5. स्वयं यथार्थवाद की आवश्यकतायें
6. जानने व समझने की आवश्यकता
7. सौन्दर्य आवश्यकतायें
यह आवश्यकता सभी लोगों में नही होती पर कुछ लोगों में पायी जाती है। जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु को खरीदने के लिए बाजार में जाता है तो उसके दिमाग में उपयुक्त आवश्यकताएं होती है जिसका सीधा प्रभाव उसके क्रय व्यवहार पर पड़ता है।
(ब) छवि
यह एक मनोवैज्ञानिक तत्थ है जो उाभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करता है। छवि तीन प्रकार की होती है--
हर व्यक्ति की आत्म छवि अलग होती है। आत्म छवि से आशय उस तस्वीर से है जो कि एक व्यक्ति अपने सम्बन्ध में रखता है।
वस्तु के सम्बन्ध में क्रेताओं की धारणा वस्तु छवि कहलाती है। वस्तु छवि भी उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करती है।
3. ब्राण्ड छवि
एक निर्माता की एक ब्राण्ड के बारे में एक उाभोक्ता जो छवि अपने मस्तिष्क में बना लेता है वह ब्राण्ड छवि कहलाती है। छवि का निर्माण वस्तु के प्रयोग से निर्माता की ख्याति से तथा विज्ञापन से होता है।
(स) सीखना-सीखना
सीखना सीखना का अर्थ वस्तु को जानने व समझने से है। यदि कोई वस्तु उपभोक्ता के प्ररेणा के अनुसार हो तो वह व्यक्ति उससे सीख लेता है अन्यथा उसे सीखने में कठिनाई आती है उदाहरण के लिए एक व्यक्ति जिसके बाल गिर रहे हों या सफेद हो रहे हो उसे उस वस्तु के नाम में कठिनाई नही आती है जो बालों को गिरने व सफेद होने से रोकती है यह सच बात है कि वस्तु या सेवा के क्रय के समय सीखे हुए क्रेता का व्यवहार बिना सीखे क्रेता के व्यवहार क अलग होता है।
2. आर्थिक घटक
(अ) परिवारिक आय
पारिवारिक आय एक परिवार की आय उसकी वचत एवं क्रय करने के तरीकों को प्रभावित करती है यदि पारिवारिक आय गरीबी रेखा के नीचे है तो उसका खर्च आय से अधिक होगा और उसका क्रय व्यवहार अन्य व्यक्ति जैसा नही होगा जिनकी आय गरीबी की पंक्ति में आगे है।
(ब) आय की आशाएं
जिन व्यक्ति को निकट भविष्य में अधिक आय प्राप्त होने की सम्भावना हो उसके द्वारा प्राय अधिक मात्रा में क्रय किया बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ जाता है इसके विपरीत भविष्य में आय प्राप्ती की आशा न होने पर कम वस्तुओं को क्रय किया जाता है।
(स) सरकारी नीति
सरकार की नीति भी क्रेता के व्यवहार को प्रभावित करती है सरकार द्वारा लगाये जाने वाले कर क्रय शक्ति को कम करते है इसी प्रकार सराकर द्वारा मुद्रा प्रसार की अवस्था में कीमतें बढती है और वचत कम होती है। प्रत्येक उपभोक्ता को सरकारी नीतियां के अनुसार क्रय व्यवहार में परिवर्तन करना होता है।
(द) उपभोक्ता साख
किसी वस्तु या सेवा का नकद या उधार में उपलब्ध होना भी क्रय व्यवहार को प्रभावित करता है साख सुविधा मिलने पर उपभोक्ताओं द्वारा अधिक क्रय किया जाता है उपभोक्ता साख द्वारा विपणनकर्ता वस्तु के बाजार को विस्तृत व संकुचित कर सकता है।
एक परिवार का आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद यदि उसके पास आय का कुछ भाग खर्च करने के लिए वच जाता है इसी को हम स्वाधीन आय कहते है।
दुनिया की सबसे बड़ी सीआरएम कंपनियों में से एक 'Salesforce.com' के संस्थापक अध्यक्ष का नाम बताइए
The Dedicated Freight Corridor Corporation of India Limited (DFCCIL) has released the DFCCIL Junior Executive Result for Mechanical and Signal & Telecommunication against Advt No. 04/2021. Candidates who are qualified for the CBT round of the DFCCIL Junior Executive are eligible for the Document Verification & Medical Examination. The highest marks of the UR category for Mechanical are 103.50 and for Signal & Telecommunication 98.750. With a salary range between Rs. 25,000 to Rs. 68,000, it is a golden opportunity for all job seekers.
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