क्रिप्टोक्यूरेंसी सदा वायदा अनुबंध ट्रेडिंग: जिन चीजों पर आपको विचार करना चाहिए

हर कोई अब व्यापार करने के लिए altcoins का उपयोग कर रहा है, और उनमें से अधिकांश सदा धन के माध्यम से व्यापार करते हैं। हालांकि, इस पद्धति के माध्यम से व्यापार कई अज्ञात कारक लाता है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए।

यहां, हम उन कारकों को देखते हैं, जिन्हें स्थायी वायदा अनुबंध के साथ व्यापार करने से पहले विचार किया जाना चाहिए:

लंबे समय तक स्थायी वायदा पदों का व्यापार न करें

जब आप व्यापार करते हैं, तो लीवरेज का उपयोग करके आमतौर पर एक मजबूत लाभ होता है। इस तरह के कार्यों में आमतौर पर मजबूर तरलता नहीं होती है, लेकिन विभिन्न रुझान इन विक्स को गलत कर सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं सकते हैं।

गलत विक्स की संभावना के कारण, निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने भविष्य के वायदा का लंबे समय तक व्यापार न करें।

स्थायी वायदा आपको altcoins को गिरवी रखने या उधार देने की अनुमति नहीं देगा

बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं, लेकिन जब आप वायदा के माध्यम से altcoins खरीदते हैं, तो आप प्रतिज्ञा या उधार देने में सक्षम नहीं होंगे।

जो निवेशक लंबे समय तक व्यापार करना चाहते हैं, उन्हें किसी भी ट्रेड को बनाने से पहले इस पर विचार करना चाहिए, क्योंकि इससे उनकी निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।

हालांकि, यह निर्णय आवश्यक नहीं है, खासकर जब आप केवल थोड़े समय के लिए ही व्यापार करते हैं।

फंडिंग दर में आसानी से उतार-चढ़ाव होता है

आम तौर पर, फंडों पर ब्याज दर यह सुनिश्चित करती है कि एक्सचेंज में कोई जोखिम संतुलन न हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि खरीदारों और विक्रेताओं के हित हमेशा किसी भी समय समान होते हैं, लेकिन उत्तोलन अक्सर बदलता रहता है।

उदाहरण के लिए, यदि खरीदार अधिक लीवरेज की मांग करते हैं, तो वित्तपोषण दर सकारात्मक हो जाएगी। इसका मतलब है कि खरीदार लेनदेन लागत वहन करेंगे।

स्थायी वायदा कारोबार दिलचस्प हो सकता है और बहुत लाभदायक हो सकता है। व्यापारी जो अनुभवी हैं और जानते हैं कि बाजार को सही तरीके से कैसे पढ़ा जाए, वे वापसी के अपेक्षित स्तर को प्राप्त करने में सक्षम होंगे।

हालांकि, व्यापारियों को उपरोक्त बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह उनके व्यापारिक तरीकों को प्रभावित कर सकता है।

सूचना स्रोत: CRYPTOPOLITAN से संकलित 0x जानकारी।कॉपीराइट लेखक, काम्सी किंग का है, और बिना अनुमति के पुन: पेश नहीं किया जा सकता है

'अग्निपथ' का नेपाल में विरोध, जानें भारतीय सेना में क्यों भर्ती होते हैं गोरखा सैनिक?

अग्निपथ योजना को लेकर नेपाल में भी विवाद शुरू हो गया है. अग्निपथ योजना के तहत नेपाल के युवाओं की भर्ती के लिए भारतीय सेना की रैली टल गई है. 1947 में हुए एक समझौते के तहत, भारतीय सेना में नेपाल के गोरखा सैनिकों को भर्ती किया जाता है. भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की संख्या 40 हजार है.

भारतीय सेना में हर साल लगभग 1300 गोरखा सैनिकों की भर्ती होती है. (फाइल फोटो-PTI)

प्रियंक द्विवेदी

  • नई दिल्ली,
  • 26 अगस्त 2022,
  • (अपडेटेड 26 अगस्त 2022, 4:37 PM IST)

चार साल के लिए सेना में भर्ती के लिए लाई गई केंद्र सरकार की 'अग्निपथ' योजना को लेकर नेपाल में भी विवाद शुरू हो गया है. नेपाल में विपक्षी पार्टियां अग्निपथ योजना का विरोध कर रहीं हैं. जैसी चिंता भारत में थी, वैसी ही वहां भी जताई जा रही है. विरोध करने वालों का कहना है कि चार साल बाद ये युवा क्या करेंगे?

अग्निपथ योजना के तहत ही नेपाली युवाओं को भी सेना में भर्ती किया जाना है. आजादी के बाद यूके, नेपाल और भारत में हुए एक समझौते के तहत नेपाली गोरखाओं को भारतीय और ब्रिटिश सेना में भर्ती किया जाता है.

नेपाली युवाओं की भर्ती के लिए सेना भर्ती रैली करने वाली थी, लेकिन नेपाल सरकार की ओर से जवाब नहीं आने के बाद इस रैली को रद्द कर दिया गया.

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इस पूरे मामले पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि लंबे समय से गोरखा सैनिकों को भारतीय सेना में भर्ती किया जा रहा है और अग्निपथ योजना के तहत गोरखा सैनिकों को भर्ती किया जाएगा.

अग्निपथ योजना का ऐलान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 14 जून को किया था. इस योजना के तहत साढ़े 17 साल से 21 साल के युवाओं को चार साल के लिए तीनों सेनाओं में भर्ती किया जाएगा. इन युवाओं को 'अग्निवीर' कहा जाएगा. इस साल 46 हजार अग्निवीरों की भर्ती होनी है. चार साल बाद इनमें से 25% को सेना में शामिल किया जाएगा, जबकि बाकी के 75% अग्निवीरों को सेवा मुक्त कर दिया जाएगा. चार साल बाद सेवा से मुक्त हुए अग्निवीरों को कोई पेंशन नहीं मिलेगी.

नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़के ने बुधवार को भारत के राजदूत नवीन श्रीवास्तव से मुलाकात कर भर्ती रैली टालने की अपील की थी. नेपाली गोरखाओं की भर्ती के लिए 25 अगस्त से रैली होनी थी.

पर ये गोरखा हैं कौन?

नेपाली सैनिकों को 'गोरखा' कहा जाता है. इनका नाम दुनिया के सबसे खतरनाक सैनिकों में होता है. भारतीय सेना के फील्ड मार्शल रहे सैम मानेकशॉ ने कहा था, 'अगर कोई कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता, तो वो या तो झूठ बोल रहा है या गोरखा है.'

गोरखा नाम पहाड़ी शहर गोरखा से आया है. इसी शहर से नेपाली साम्राज्य का विस्तार शुरू हुआ था. गोरखा नेपाल के मूल निवासी हैं. इन्हें ये नाम 8वीं सदी में हिंदू संत सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं योद्धा श्री गुरु गोरखनाथ ने दिया था.

नेपाली जवानों की भारतीय सेना में भर्ती क्यों?

इसे जानने के लिए 200 साल पहले जाना होगा. बात सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं 1814 की है. भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था. अंग्रेज नेपाल पर भी कब्जा करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने नेपाल पर हमला कर दिया. ये युद्ध एक साल से भी लंबे समय तक चला. आखिरकार सुगौली की संधि ने युद्ध खत्म किया.

इस जंग में नेपाली सैनिकों की बहादुरी देखकर अंग्रेज प्रभावित हो गए. उन्होंने सोचा क्यों न इन्हें ब्रिटिश सेना में शामिल किया जाए. इसके लिए 24 अप्रैल 1815 में नई रेजिमेंट सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं बनाई गई, जिसमें गोरखाओं को भर्ती किया गया.

ब्रिटिश इंडिया की सेना में रहते हुए गोरखाओं ने दुनियाभर में कई अहम जंग लड़ी. दोनों विश्व युद्ध में भी गोरखा सैनिक थे. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों विश्व युद्ध में करीब 43 हजार गोरखा सैनिकों की मौत हो गई थी.

आजादी के बाद नवंबर 1947 में यूके, भारत और नेपाल के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ. इसके तहत ब्रिटिश और भारतीय सेना सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं में नेपाली गोरखाओं की भर्ती की जाती है. आजादी के समय ब्रिटिश सेना में गोरखाओं की 10 रेजिमेंट थी.

समझौते के तहत 6 रेजिमेंट भारत और 4 रेजिमेंट ब्रिटिश सेना का हिस्सा बनी. लेकिन, 4 रेजिमेंट के कुछ सैनिकों ने ब्रिटेन जाने से मना कर दिया. तब भारत ने 11वीं रेजिमेंट बनाई.

भारत में कितने गोरखा सैनिक?

गोरखा सैनिकों की ट्रेनिंग भी दुनिया में सबसे ज्यादा खतरनाक मानी जाती है. ट्रेनिंग के दौरान सैनिकों को सिर पर 25 किलो रेत रखकर 4.2 किलोमीटर खड़ी दौड़ दौड़ना पड़ता है. ये दौड़ा उन्हें 40 मिनट में पूरी करनी होती है.

भारतीय सेना में गोरखाओं की 7 रेजिमेंट और 43 बटालियन हैं. कई सारी बटालियन को मिलकर एक रेजिमेंट बनती है. अनुमान के मुताबिक, भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की संख्या 40 हजार के आसपास है. हर साल 1200 से 1300 गोरखा सैनिक भारतीय सेना में शामिल होते हैं.

गोरखा सैनिकों को भारतीय सेना के जवानों जितनी है सैलरी मिलती है. रिटायर होने पर उन्हें पेंशन भी दी जाती है.

भारतीय सेना के अलावा ब्रिटिश सेना में भी गोरखा सैनिकों की भर्ती होती है. पहले इन सैनिकों को रिटायर होने के बाद नेपाल लौटना होता था, लेकिन अब ये चाहें तो ब्रिटेन में भी रह सकते हैं. ब्रिटिश सरकार भी इन गोरखा सैनिकों को पेंशन देती है. हालांकि, इन्हें ब्रिटिश सैनिकों की तुलना में पेंशन कम दी जाती है.

अग्निपथ का नेपाल में विरोध क्यों?

अग्निपथ योजना को लेकर भारत में दो बातों पर विवाद था. पहला ये कि चार साल बाद इन युवाओं का क्या होगा? और दूसरा ये कि सेना में चार साल सेवा करने के बाद भी इन्हें पेंशन नहीं मिलेगी, तो ये गुजारा कैसे करेंगे? इन्हीं दो बातों पर नेपाल में भी विवाद हो रहा है.

भारतीय सेना में 40 सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं हजार के करीब गोरखा सैनिक हैं, जबकि डेढ़ लाख रिटायर्ड हैं. इनकी सैलरी और पेंशन पर भारत हर साल अनुमानित 4,200 करोड़ रुपये खर्च करता है. ये रकम नेपाल के रक्षा बजट से भी ज्यादा है. इसलिए अगर पेंशन बंद होती है तो इससे नेपाल की अर्थव्यवस्था को भी गहरा नुकसान पहुंचेगा.

Crude Rate Today: कोरोना वायरस के कहर से टूटा कच्चा तेल, 5 महीने के निचले स्तर पर भाव

Crude Rate Today

Crude Rate Today: कोरोना के गहराते प्रकोप से निपटने के लिए यूरोप में लॉकडाउन से वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंकाओं से फिर कच्चे तेल के दाम में भारी गिरावट आई है. वैश्विक बाजार में कच्चे तेल का भाव पांच महीने के निचले स्तर पर आ गया है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बीते एक सप्ताह में बेंचमार्क कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड के दाम में करीब पांच डॉलर प्रति बैरल की गिरावट आई है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आई गिरावट से भारतीय वायदा बाजाद में भी बीते एक सप्ताह में करीब 400 रुपये प्रति बैरल की गिरावट आई है.

29 मई के निचले स्तर पर पहुंचा MCX क्रूड

घरेलू वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर कच्चे तेल के नवंबर वायदा अनुबंध में बीते सत्र से 83 रुपये यानी 3.14 फीसदी की गिरावट के साथ 2,559 रुपये प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था जबकि इससे पहले भाव 2,544 रुपये प्रति बैरल तक टूटा, जोकि 29 मई के बाद का सबसे निचला स्तर है जब तेल का भाव 2,450 रुपये प्रति बैरल तक टूटा था. अंतर्राष्ट्रीय वायदा बाजार इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) पर ब्रेंट क्रूड के जनवरी डिलीवरी अनुबंध में बीते सत्र के मुकाबले 3.06 फीसदी की गिरावट के साथ 36.78 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था, जबकि इससे पहले भाव 35.76 डॉलर प्रति बैरल तक टूटा था जो करीब पांच महीने का सबसे निचला स्तर है.

इसी प्रकार, अमेरिकी क्रूड वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के दिसंबर डिलीवरी अनुबंध में भी बीते सत्र से 3.66 फीसदी की कमजोरी के साथ 34.48 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था, जबकि इससे पहले भाव 33.65 डॉलर तक टूटा था जोकि 29 मई के बाद का सबसे निचला स्तर है जब डब्ल्यूटीआई का भाव 32.36 डॉलर प्रति बैरल तक गिरा था.

कच्चे तेल के दाम में आई गिरावट की पांच मुख्य वजह

  1. कोरोना का कहर दोबारा गहराने से तेल की मांग में कमी की आशंका बनी हुई है.
  2. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है.
  3. लीबिया और इराक से तेल की आपूर्ति बढ़ने से ओपेक के अन्य सदस्यों देशों द्वारा किए जा रहे उत्पादन में कटौती के बावजूद समूह की आपूर्ति में वृद्धि हो रही है.
  4. आईईए का अनुमान है कि कोरोना महामारी का असर लंबे समय तक रह सकता है जिससे तेल की वैश्विक मांग के मामले में यह सदी का सबसे कमजोर दशक रह सकता है. उधर, ओपेक प्रमुख का कहना है कि कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने से तेल में रिकवरी में विलंब हो सकता है.
  5. अमेरिका में तेल के भंडार में 23 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान 43.2 लाख बैरल का इजाफा हुआ। कोरोना महामारी के चलते अमेरिका में तेल की मांग में पिछले साल के मुकाबले करीब 13 फीसदी की गिरावट आई है.

क्या कहते हैं जानकार

एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसीडेंट (एनर्जी एवं करेंसी रिसर्च) अनुज गुप्ता ने बताया कि कोरोना के कहर के चलते तेल की मांग कमजोर रहने की आशंका से कीमतों में गिरावट आई है और आगे डब्ल्यूटीआई का भाव 30 डॉलर जबकि ब्रेंट क्रूड का 32 डॉलर प्रति बैरल तक गिर सकता है.

केडिया एडवायजरी के डायरेक्टर अजय केडिया ने भी बताया कि कोरोन के कहर के चलते यूरोप में लॉकडाउन होने से तेल की मांग में कमी की आशंका बनी हुई है जिससे अक्टूबर महीने में कच्चे तेल के भाव में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट रही. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक उथल-पुथल को लेकर भी कारोबारी असमंजस में हैं.

अक्षय तृतीया के दिन बढ़ी सोने की कीमत, जानिए अपने शहर का गोल्ड रेट

हालांकि एमसीएक्स पर चांदी का जुलाई सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं वायदा 281 रुपये यानी 0.75 फीसदी कमजोरी के साथ 37,110 रुपये प्रति किलोग्राम पर बना हुआ था, जबकि कारोबार के दौरान चांदी का भाव 37,051 रुपये प्रति 10 ग्राम तक फिसला.

अक्षय तृतीया के दिन बढ़ी सोने की कीमत, जानिए अपने शहर का गोल्ड रेट

घरेलू बाजार में सोना चमका, चांदी फिसली

अक्षय तृतीया के दिन आज सोने की कीमत सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं प्रति 10 ग्राम 32 हज़ार से 33 हज़ार के बीच रही. अक्षय तृतीया से एक दिन पहले ही घरेलू वायदा बाजार एमसीएक्स पर सोने में सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं तेजी रही, जबकि चांदी की चमक फीकी पड़ गई. हालांकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोने में शुरुआती कारोबार में मजबूती देखी गई, लेकिन डॉलर की मजबूती के कारण बाद में सोने में गिरावट दर्ज की गई. बता दें, अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) या अखा तीज (Akha Teej) हिन्‍दुओं का खास पर्व है और इस दिन सोना या सोने से बने आभूषणों को खरीदने की परंपरा है. अक्षय तृतीया धनतेरस के बाद सबसे ज्यादा सोना खरीदा जाता है. मान्‍यता है कि इस दिन सोना खरीदने से शुभ लाभ प्राप्‍त होता है.

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मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर शाम सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं 18.42 बजे सोने का जून वायदा अनुबंध 61 रुपये की तेजी के साथ 31,508 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बना हुआ था, जबकि कारोबार के दौरान भाव 31,650 रुपये प्रति 10 ग्राम तक उछला.

हालांकि एमसीएक्स पर चांदी का जुलाई वायदा 281 रुपये यानी 0.75 फीसदी कमजोरी के साथ 37,110 रुपये प्रति किलोग्राम पर बना हुआ था, जबकि कारोबार के दौरान चांदी का भाव 37,051 रुपये प्रति 10 ग्राम तक फिसला.

कमोडिटी बाजार विश्लेषकों ने बताया कि अक्षय तृतीया को सोने की खरीदारी के लिए शुभ माना जाता है, इसलिए सोने सदा के वायदा अनुबंध क्या हैं की हाजिर मांग मजबूत बनी हुई है. उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि अक्षय तृतीया पर घरेलू बाजार में अच्छी लिवाली रहेगी.

अंतर्राष्ट्रीय वायदा बाजार कॉमेक्स पर सोने का जून वायदा अनुबंध 2.25 डॉलर की कमजोरी के साथ 1,279.05 डॉलर प्रति औंस पर बना हुआ था, जबकि शुरुआती कारोबार में भाव 1,287 डॉलर प्रति औंस तक उछला.

चांदी का जुलाई अनुबंध पिछले सत्र से 0.87 फीसदी की कमजोरी के साथ 14.84 डॉलर प्रति औंस पर बना हुआ था, जबकि अनुबंध का भाव कारोबार के दौरान 14.77 डॉलर प्रति औंस तक फिसला.

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