व्यवहारवाद की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

1. नियमितताएँ - यद्यपि मानव के व्यवहार में अनेक असमानताएँ देखने को मिलती हैं, परन्तु यदि मानव व्यवहार का गहन विश्लेषण किया जाए तो उसमें कुछ महत्त्वपूर्ण समानताएँ भी पाई जाती हैं जिन्हें व्याख्यात्मक एवं पूर्वकथनीय मूल्य के लिए सामान्यीकरणों या सिद्धान्तों के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

2. एकीकरण - व्यवहारवादी इस विचार को स्वीकार करते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा उसके बीच सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा अन्य कार्यों के बीच सीमा रेखा को निर्धारित किया जा सकता है, परन्तु किसी भी पक्ष से सम्पूर्ण जीवन को विस्तृत रूप से नहीं समझा जा सकता, इसलिए किसी भी राजनीतिक घटना का अध्ययन करने के लिए आवश्यक है कि समाज की सभी प्रकार की घटनाओं का अध्ययन किया जाए। यदि विभिन्न सामाजिक विज्ञान की इस सम्बद्धता को ध्यान में रखा जाता है, तो इससे राजनीति विज्ञान को सामाजिक विज्ञानों की श्रेणी में लाने में पूर्ण सहायता मिलेगी। इस प्रकार राजनीति विज्ञान तथा राजनीतिक अनुसन्धान अन्य सामाजिक विज्ञानों के शोधों के गहन विश्लेषण और विस्तृत व्याख्या प्रति तरस्थ नहीं रहना चाहिए।

3. सत्यापित या सत्यापन विधि वैधानिकता का आधार है - इस क्रिया के अनुसार मानव-व्यवहार के सम्बन्ध में प्राप्त जानकारी इस प्रकार की हो जिसे वैज्ञानिक विधियों से जाँचा-परखा जा सके। अतः व्यवहार के सम्बन्ध में सामान्यी करणों की प्रामाणिकता परीक्षणीय होनी चाहिए।

4. प्रविधियाँ - व्यवहारवादी, अध्ययन सामग्री को प्राप्त करने के लिए शोध के उपकरणों तथा पद्धतियों के उपयोग पर अधिक बल देते हैं। विभिन्न प्रविधियों की सहायता से आँकड़ों को प्राप्त किया जाता है। व्यवहारवादियों का कथन कि प्रविधियाँ तथा उपकरण प्रामाणिक होने चाहिए जिससे व्यवहार का पर्यवेक्षण और विश्लेषण करने के लिए परिशद्ध साधनों की खोज की जा सके परिशुद्धीकरण की प्रक्रिया विकासशील होनी चाहिए।

5. विशुद्ध विज्ञान - राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन शुद्ध विज्ञान के रूप में करना चाहिए । विभिन्न प्रकार की वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करके निष्कर्षों को इस स्थिति में ले जाना चाहिए जिससे कि वे ठोस सिद्धान्तों का रूप धारण कर लें तथा राजनीति विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञानों की श्रेणी में रखा जा सके।

6. क्रमबद्धीकरण - व्यवहारवादियों का मत है कि शोध या अनुसन्धान कार्य क्रमबद्ध और व्यवस्थित होना चाहिए। दूसरे शब्दों में सिद्धान्त और अनुसन्धान को ज्ञान के एक सम्पूर्ण और व्यवस्थित समूह के घनिष्ठ रूप से अन्तर्ग्रसित भागों में देखना चाहिए। सिद्धान्तहीन शोध का कोई महत्त्व नहीं होता है।

7. मूल्य निरपेक्षता - व्यवहारवाद में व्यक्तिगत मूल्यों को पृथक् रखा जाता है तथा अध्ययनकर्ता को तथ्यों का संग्रह करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना | चाहिए कि उसके मूल्यों तथा मान्यताओं का उत्तरदाता पर प्रभाव नहीं पड़े।

8. परिमाणीकरण - व्यवहारवादियों का कथन है कि यथासम्भव मापन और परिमाणीकरण का सहारा लेना चाहिए। राजनीतिक जीवन की पेचीदगियों का शुद्ध व सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए कठोरतम नियमों को अपनाना परमावश्यक है।

उपन्यास का अर्थ और परिभाषा

हिन्दी साहित्य में ' उपन्यास ' नवीनतम् विधाओं में से एक है। अंग्रेजी में जिसे ' नॉवेल ' कहते हैं। ' नॉवेल ' शब्द नवीन और लघु गद्य गहन विश्लेषण और विस्तृत व्याख्या कथा दोनों अर्थो में प्रयुक्त होता रहा , किन्तु अठारहवी शताब्दी के पश्चात् साहित्यिक विधा के रूप में प्रतिष्ठित हो गया।

  • गुजराती में ' नवलकथा मराठी में ' कादम्बरी ' और बँगला के सदृश ही हिन्दी में यह विधा ' उपन्यास 'नाम से प्रचलित है। इतालवी भाषा में ' नॉवेल ' शब्द ' लघुकथा ' के लिए प्रयुक्त होता है। जो नवीनतम् का द्योतन तो कराता ही है साथ ही इस तथ्य को भी घोषित करता है कि उसका सम्बन्ध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वर्तमान जीवन से है।

उपन्यास की परिभाषा

  • कहानी की गहन विश्लेषण और विस्तृत व्याख्या भाँति आधुनिक उपन्यास भी पाश्चात्य साहित्य का कलेवर लेकर आया है। तो यहाँ भारतीय एवं पश्चिमी विद्वानों की कतिपय परिभाषाओं को लिया जा सकता है।

भारतीय विचारकों के अनुसार उपन्यास की परिभाषा -

  • आधुनिक युग में जिस साहित्य विशेष के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है उसकी प्रकृति को स्पष्ट करने यह शब्द सर्वथा गहन विश्लेषण और विस्तृत व्याख्या गहन विश्लेषण और विस्तृत व्याख्या समर्थ है।
  • उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द के शब्दों में - “ मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है।"

हजारी प्रसाद द्विवेद्वी जी उपन्यास की परिभाषा देते हुए कहते हैं-

  • “ उपन्यास आधुनिक युग की देन है। नये उपन्यास केवल कथामात्र नहीं है यह आधुनिक वैयक्तितावादी दृष्टिकोण का परिणाम है। इसमें लेखक अपना एक निश्चित मत प्रकट करता है और कथा को इस प्रकार सजाता है कि पाठक अनायास ही उसके उद्देश्य को ग्रहण कर सकें और उससे प्रभावित हो सकें। ”
  • डॉ श्याम सुन्दर दास के शब्दों में- “ उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है ।"

डा 0 भागीरथ मिश्र के अनुसार उपन्यास की परिभाषा

  • “ युग की गतिशील पृष्ठभूमि पर सहज शैली में स्वाभाविक जीवन की पूर्ण व्यापक झाँकी प्रस्तुत करने वाला गद्य मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा हैं। ”

पाश्चात्य विचारकों के अनुसार उपन्यास की परिभाषा -

उपन्यास के सन्दर्भ में किसी निकष में पहुँचने से पूर्ण कतिपय पाश्चात्य विद्वानों की एतत् सम्बन्धी धारणा की प्रस्तुति नितान्त आवश्यक।

  • राल्फ फॉक्स के अनुसार- "उपन्यास केवल काल्पनिक गद्य नहीं है , यह मानव जीवन का गद्य हैं। ”
  • फील्डिंग के अनुसार- " उपन्यास एक मनोरंजन पूर्ण गद्य महाकाव्य है। ”
  • बेकर ने कहा है कि “ उपन्यास वह रचना है जिसमें किसी कल्पित गद्य कथा के द्वारा मानव जीवन की व्याख्या की गयी हो। ”

प्रिस्टले के अनुसार उपन्यास की परिभाषा

  • "उपन्यास गद्य में लिखी कथा है जिसमें प्रधानतः काल्पनिक पात्र और घटनाएँ रहती है। यह जीवन का अत्यन्त विस्तृत और विशद दपर्ण है और साहित्य की अन्य विधाओं की तुलना में इसका क्षेत्र व्यापक होता है। उपन्यास को हम ऐसे कथानक के रूप में ले सकते हैं जो सरल और शुद्ध अथवा किसी जीवन दर्शन का माध्यम हो । ”
  • उपर्युक्त विवेचन के आधार पर का जा सकता है कि उपन्यास आधुनिक युग का अति समादृत साहित्य रूप है। उपन्यास की शैली की स्वाभाविकता उसकी रोचकता बनाये रखने में सहायक होती है। उपन्यास में उपन्यासकार का निजी जीवन दर्शन प्रतिबिम्बित होता है। लेखक की जीवन और जगत की अनुभूति जितनी व्यापक और गहरी होगी उसका औपन्यासिक वर्णन भी उतना ही व्यापक और गम्भीर होगा।

उपन्यास की विषेशताएँ

ऊपर आप उपन्यास के स्वरूप और अर्थ को समझ चुके है। अब हम संक्षेप में ' उपन्यास ' की विषेशताओं को जानेंगे। विद्वानों ने उपन्यास में निम्नलिखित तथ्यों को प्रस्तुत किया है -

गहन विश्लेषण और विस्तृत व्याख्या

भाषण: क्रिया या संज्ञा

1. [ध्यान से और अच्छी तरह से पढ़ें]: गहन विश्लेषण और विस्तृत व्याख्या ध्यान से पढ़ें

2. [गहन पठन]: ध्यान से सामग्री पढ़ने की जरूरत

"एक प्रारंभिक बिंदु के रूप में इस तरह गहन पठन लेख के साथ है, तो, गहन एक लेख पढ़ने, आप पढ़ सकते हैं पुस्तकों के एक बहुत सभी दिशाओं में खुला विकसित करने के लिए।": संकेतों ताओ "& लेफ्टिनेंट; परिचय, गहन मार्गदर्शन कॉर्नर और जी.टी. का हवाला देते हैं"

विश्लेषण पक्ष मूल्यांकन, सबसे अच्छा से जानने के लिए आदेश में, मन में स्पष्ट और पूरी तरह से समझ सुनिश्चित करने के लिए है, जबकि Dauth, बार बार परिष्कृत, दोहराया पढ़ाई सोचना। पेशेवर और प्रसिद्ध कृति के लिए किताबें इस दृष्टिकोण रखना चाहिए। केवल सावधान अनुसंधान, चबाया, लेख, और अधिक, और अधिक शोध और अधिक परिष्कृत के अधिक खुदाई करने के क्रम में "सार के बारे में शिकायत की है।" "हम गहन पठन अध्ययन करने के लिए एक महत्वपूर्ण तरीका है कि कह सकते हैं।

1, वाक्य की क्लासिक बयान पता लगाने के लिए

2, शब्द की किताब पर, अवधारणा (विशेष रूप से कुंजी शब्दों से कुछ) में परिभाषित किया जा करने के लिए

3, किताब (या पृष्ठभूमि सिद्धांत) के लिए पृष्ठभूमि का गठन समझा जाना चाहिए

4, बुनियादी अवधारणाओं और सुविधाओं संक्षेप

5, आप तुलना करना चाहते हैं कि एक ही बातें

6, वास्तुकला और तार्किक सिद्धांत के बीच के रिश्ते की पहचान करने के लिए

7, अनुसंधान विधियों में प्रयोग किया जाता है (या ऑपरेटिंग सिद्धांत, कदम)

8, विशिष्ट मामले को समझने

9, गहन विश्लेषण और विस्तृत व्याख्या इसके महत्व का विश्लेषण, क्षेत्र लागू किया जा सकता है, जिस तरह

10, अपनी सीमाओं और कमियों की पहचान

11 उदाहरण लेनोवो उपयोग कर रहे थे

12 स्वयं काल्पनिक समस्याओं और स्थितियों के बारे में सोचते

13 फिर से अपने खुद के विचारों के साथ इसे फिर से दोहराने की क्या था समझ लिया

शोध प्रक्रिया के चरण (Step of Research Process)

शोध नया ज्ञान प्राप्त करने का एक माध्यम है। शोध में शोधार्थी को अनुसंधान कार्य पूरा करने के लिए शोध के विभिन्न चरणों से गुजरना पड़ता है। शोधार्थी को शोध प्रक्रिया में प्रत्येक चरण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है जिससे सही ढंग शोध कार्य संपन्न हो सके। शोध प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की विस्तृत कार्य योजना तैयार करना चाहिए तथा प्रत्येक चरणों को ध्यान पूर्वक अवलोकन कर और जांच कर आवश्यकता अनुसार परिवर्तन एवं संशोधन कर लेना चाहिए। जैसा कि हम लोग जानते हैं कि शोध एक सतत चलने प्रक्रिया है इसमें कोई कार्य अन्तिम नहीं होता। शोध प्रक्रिया में शोधार्थी को विभिन्न स्तर पर निम्नलिखित चरणों से गुजरना होता है।

1. शोध समस्या की पहचान करना (Identifying of the Research Problem)

प्रथम चरण में शोधार्थी को शोध समस्या की पहचान करना होता है अर्थात जिसे विशिष्ट क्षेत्र में उसे शोध कार्य करना है उसकी पहचान करना होता है। शोध समस्या ऐसी होनी चाहिए जिससे किसी नये ज्ञान की आविर्भाव हो और समसामयिक रूप से उपयोगी हो।इसमें शोधार्थी विशेष शोध समस्या का चयन करता है अर्थात वह एक विशेष विषय क्षेत्र पर कार्य करने के लिए मन:स्थिति बनाता है और विशिष्ट शोध समस्या का प्रतिपादन परिष्कृत तकनीकी शब्दों में करता है। शोधार्थी को ध्यान रखना चाहिए कि शोध समस्या का प्रतिपादन प्रभाव कारी एवं स्पष्ट तकनीकी शब्दावली में किया जाए। इसके साथ-साथ शोधार्थी को शोध समस्या में समाहित उप समस्याएं कौन-कौन सी हैं। इसका भी विस्तार से वर्णन करना चाहिए एवं शोधार्थी को विषय शोध विषय क्षेत्र में विशिष्ट साहित्य खोज करना चाहिए जिससे शोध विषय के बारे में स्पष्ट ज्ञान हो सके।

2. संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण (Review of Relevant Literature)

शोधार्थी अपने विशेष शोध समस्या से संबंधित विषय पर गहन अध्ययन करता है। अन्य शोधकर्ताओं और विद्वानों द्वारा अद्यतन किए गए शोध कार्य का गहन अध्ययन व अवलोकन करता है। शोधकर्ता शोध से संबंधित शोध प्रबंधों, लेखों व अन्य स्वरूपों में उपलब्ध सामग्री का गहन सर्वेक्षण करता है। जिससे शोधार्थी को शोधकार्य करने की दिशा निर्देश मिलता है। इसमें शोधकर्ता अपने शोध समस्या से जुड़ी हुई अभी तक किए गए शोध प्रविधि, आंकड़ों का संकलन विधि और तकनीकी, आंकड़े विश्लेषण तकनीकी आदि का भी सार तैयार करता है। शोधार्थी को इस चरण में यह भी स्पष्ट उल्लेख कर लेना चाहिए कि उसका शोध कार्य पूर्वर्ती शोध कार्य से किस तरह भिन्न है। इस चरण में संबंधित विषय क्षेत्र पर महत्वपूर्ण जानकारी प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक सूचना स्रोत तथा अन्य स्रोत से प्राप्त कर गहन चिंतन और साहित्य सर्वेक्षण कर लेना आवश्यक होता है, ताकि शोधार्थी को शोध कार्य करने में एक दिशा निर्देश मिल सके।

3. उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन (Selection of Appropriate Research Method)

इस चरण में शोधार्थी को उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन करना होता है। हर शोध समस्या एक विशिष्ट प्रकार की होती है और उसका समाधान भी एक विशेष शोध प्रविधि की सहायता से खोजा जा सकता है यदि हम समय विस्तार के आधार पर संबंधित समस्याओं के उत्तर खोजने का प्रयास करें तो निम्न मुख्य तीन शोध प्रविधि को अपनाना होता है -ऐतिहासिक शोध प्रविधि (Historical Method), सर्वेक्षण शोध प्रविधि (Survey Method), प्रयोगात्मक शोध प्रविधि (Experimental Method)

  • ऐतिहासिक शोध प्रविधि उस शोध समस्या का समाधान के लिए उपयोगी होता है जिसमें शोधार्थी को भूतकाल में उत्तर या समाधान खोजना होता है। उदाहरण स्वरूप भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व पुस्तकालयों की स्थिति, डॉ एस आर रंगनाथन का पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान के विकास में योगदान आदि इस शोध गहन विश्लेषण और विस्तृत व्याख्या प्रविधि में वर्तमान परिस्थिति और समस्याओं का हल भूतकाल में हुए संबंधित विषय का अध्ययन के आधार पर खोजने का प्रयास किया जाता है।
  • सर्वेक्षण शोध प्रविधि में उन समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। जिसका हल वर्तमान परिस्थिति में से खोजना होता है। यह प्रविधि सामाजिक विज्ञान में सबसे अधिक प्रयोग होता है जैसे पाठक-अध्ययन, पुस्तकालय सर्वेक्षण, ग्रामीण पाठकों का सूचना खोजने संबंधी व्यवहार आदि शोध समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास किया जाता है।
4. शोध परिकल्पना का प्रतिपादन (Formulation of Research Hypothesis)

शोध प्रक्रिया को सही दिशा प्रदान करने के लिए शोध प्राककल्पना का प्रतिपादन करना अत्यंत आवश्यक है। शोध में आंकड़े के संकलन और विश्लेषण के पूर्व शोध के परिणामों का अनुमान करना परिकल्पना है। यह एक बुद्धिमत्ता पूर्ण भविष्यवाणी होती है। यह परिकल्पना पूर्व निर्धारित सिद्धांतों अपना व्यक्तिगत अनुभवों अथवा आनुभविक विचारों के आधार पर शोध प्राक्कलन गहन विश्लेषण और विस्तृत व्याख्या का निर्माण किया जाता है।

5.आंकड़ा संकलन तकनीक और उपकरणों का चयन (Selection of Data Collection Tools and Techniques)

शोध के लिए आंकड़ा संकलन की अनेक विधियां हैं। शोधार्थी को अपनी शोध समस्या के अनुरूप तकनीकों का सहारा लेने की आवश्यकता होती है। प्रत्येक तकनीक और उपकरण एक विशिष्ट प्रकार के शोध के लिए उपयोगी होता है। अतः शोधार्थी को अपने शोध समस्या के अनुरुप तकनीक और उपकरण का चयन करना होता है ताकि आसानी से शोध समस्या का हल निकाला जा सके। शोध समस्या के समाधान हेतु आंकड़े का संकलन हेतु निम्नलिखित तकनीक और उपकरण का प्रयोग करते हैं।

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आपको सटीकता, कवरेज और प्रदर्शन स्‍कोर के मामले में अपने तरह का पहला गहन विश्‍लेषण मिलता है जो आपके प्रदर्शन पर नजर रखने और उसे सुधारने में मदद करता है।

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★ सटीकता आपको बताती है कि आप सही तरीके से याद रख सकते और जवाब दे सकते हैं या नहीं। नोट्स को कई बार पूरी तरह से दोहराने का कोई फायदा नहीं है यदि आप उसे परीक्षा में याद नहीं रख सकते हैं।

★ प्रदर्शन स्‍कोर आपको बताता है कि आप परीक्षा के लिए तैयार हैं या नहीं। यह कई मैट्रिक्‍स जैसे कि सटीकता, कवरेज, प्रश्‍नों के जवाब देने में लगने वाले समय, प्रश्‍नों के कठिनाई स्‍तर, पिछले साल के पेपर में पूछे गए प्रश्‍नों के प्रकार और आपने प्रैक्टिस टेस्‍ट में इसी तरह के सवाल का कैसे जवाब दिया है, इसपर निर्भर करता है।

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