Kapiva का दावा- 18000 फीट ऊंचाई वाले विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने क्षेत्रों से 100% शुद्ध हिमालयी शिलाजीत लाते हैं हम, विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने जान‍िए जबर्दस्त ताकत के लिए कैसे कारगर होता है यह हर्बल फार्मूला

मंदी में क्यों उछल रहा सेंसेक्स

इस समय सकल घरेलू उत्पाद या ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट (जीडीपी) में वृद्धि वापस पटरी पर आ चुकी है। देश में कुल उत्पादन की मात्रा का ब्यौरा जीडीपी से मिलता है। नोटबंदी से पहले हमारी विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने जीडीपी की ग्रोथ रेट 7 से 8 प्रतिशत रहती थी। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद यह ढीली पड़ गई थी। अब यह पुरानी दर पर वापस पहुंच गई है। दूसरा शुभ संकेत शेयर बाजार में उछाल का है। 2016 के पूर्व शेयर बाजार का सूचकांक ‘सेंसेक्स’ 28000 से 30000 के दायरे में रहता था। वर्तमान में यह 33000 से ऊपर चल रहा है। सेंसेक्स की गणना प्रमुख विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने कंपनियों के शेयर के दाम से की जाती है। सेंसेक्स में उछाल का अर्थ है कि शेयरों विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने के दाम बढ़ रहे हैं। निवेशकों में उत्साह है। विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने उन्हें आशा है कि आने वाले समय में देश की कंपनियां भारी लाभ कमाएंगी और वे शेयर खरीदने को उत्सुक हैं। तीसरा शुभ संकेत रुपए के मूल्य में स्थिरता का है। डालर के सामने रुपए का मूल्य पिछले 4-5 वर्षों से 64-66 के विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने दायरे में बना हुआ है। हमें विदेशी मुद्रा मूल रूप से निर्यातों अथवा विदेशी निवेश से मिलती है। रुपए के मूल्य का अपनी जगह टिका रहना बताता है कि हमारे बाहर जाने वाले निर्यात एवं भीतर आने वाला विदेशी निवेश ठीकठाक है। इन तीनों शुभ संकेतों से भारतीय अर्थव्यवस्था की अच्छी तस्वीर उभर कर आती है। लेकिन दूसरी तरफ संकट के भी संकेत मिल रहे हैं। बीते वर्ष 2016-17 में बैंकों द्वारा दिए गए लोन में मात्र 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। यह वृद्धि वास्तव में उदासी का द्योतक है। विद्वान पाठक को ध्यान होगा कि महंगाई से हमारी मुद्रा की कीमत अथवा माल खरीदने की शक्ति का हृस होता है। जैसे बीते वर्ष यदि किसी शर्ट का दाम 100 रुपए था, तो इस वर्ष 5 प्रतिशत मंहगाई जोड़ कर उसी शर्ट का दाम 105 रुपए हो जाता है।

23 महीने के सबसे निचले स्‍तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, 7.94 अरब डॉलर की बड़ी गिरावट

23 महीने के सबसे निचले स्‍तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, 7.94 अरब डॉलर की बड़ी गिरावट

विदेशी मुद्रा भंडार करीब दो साल के निचले स्‍तर पर पहुंचा (फाइल फोटो)

विदेशी मुद्रा भंडार में करीब दो साल में गिरावट हुई है। भारतीय रिजर्व बैंकी (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक, 2 विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने सितंबर को समाप्त सप्ताह के लिए भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7.941 बिलियन डॉलर घटकर 553.105 बिलियन डॉलर हो गया, जो करीब दो वर्षों में सबसे निचला स्तर पर आ चुका है। देश के विदेशी मुद्रा भंडार में यह 5वें साप्‍ताह के दौरान लगातार गिरावट है।

देश के विदेशी मुद्रा भंडार में हाल के महीनों में तेजी से गिरावट विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने आई है। ऐसा इस कारण, क्योंकि आरबीआई ने रुपए को तेजी से गिरने को बचाने के लिए विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने मुद्रा बाजार में हस्‍तक्षेप किया था और कदम उठाए थे, जिसका असर सीधे तौर पर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा है। इससे पहले, आरबीआई के आंकड़ें के अनुसार, 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 3.007 अरब डॉलर और पिछले सप्ताह 6.687 अरब डॉलर घट गया था।

RBI का मेडन डॉलर-रुपया स्वैप नीलामी को मिली मंजूरी

RBI का मेडन डॉलर-रुपया स्वैप नीलामी को मिली मंजूरी |_40.1

भारतीय रिज़र्व बैंक का बांड की पारंपरिक खुले बाजार की खरीद के बजाय डॉलर-रुपये की अदला-बदली का सहारा लेने का विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने निर्णय, अर्थव्यवस्था में तरलता को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक की तरलता प्रबंधन नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है. तीन साल की मुद्रा स्वैप योजना के तहत, आरबीआई ने रुपये के बदले बैंकों से $ 5 बिलियन खरीदने की योजना बनाई. बैंकों के लिए, यह उनकी किटी में बेकार पड़े विदेशी मुद्रा भंडार से कुछ ब्याज अर्जित करने का एक तरीका है. अर्थव्यवस्था में ताजा तरलता को इंजेक्ट करने के अलावा, मुद्रा बाजार के लिए भी इस कदम के निहितार्थ होंगे, क्योंकि यह भारतीय रिजर्व बैंक के भंडार को बढ़ाने में मदद करता है.

आपकी बात: रुपए में गिरावट का अर्थव्यवस्था पर क्या असर हो रहा है?

आपकी बात: रुपए में गिरावट का अर्थव्यवस्था पर क्या असर हो रहा है?

बिगड़ेगा भुगतान संतुलन
रुपए में गिरावट से भारतीय निर्यात तो बढ़ेगा, परन्तु हमारे लिए विदेशों से आयात करना बहुत महंगा हो जाएगा। इससे भुगतान संतुलन बिगड़ जाएगा, जो हमारी अर्थव्यवस्था को निश्चित तौर पर नुकसान पहुंचाएगा।
-भूपेन्द्र माण्डैया, अलवर
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रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

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