भोपाल। खुद को ईमानदार बताने वाले मध्यप्रदेश राज्य प्रशासनिक सेवा (MP SAS) के अधिकारी एवं रिटायर्ड अपर कलेक्टर आनंद जैन (RETIRED UPPER COLLECTOR ANAND JAIN) के यहां लोकायुक्त (LOKAYUKTA POLICE RAID) छापे में पुलिस को संपत्तियों की डीटेल्स हाथ लगीं थीं। अब उनके बैंक लॉकर्स को खंगाला गया तो उसमें (BANK LOCKERS) से करीब 3 किलो सोना (GOLD) और 5 लाख नकद मिले। जैन की बेटी सौम्या भोपाल साइबर सेल में बतौर DSP पदस्थ है। उसके नाम पर भी एक लॉकर में सोने के जेवर व नकदी मिली। लॉकरों में सोने के बिस्किट और सिक्कों के अलावा विदेशी मुद्रा भी मिली है।

करेंसी स्वैप किसे कहते हैं और इससे अर्थव्यवस्था को क्या फायदे होंगे?

करेंसी स्वैप का शाब्दिक अर्थ होता है मुद्रा की अदला बदली. जब दो देश/ कम्पनियाँ या दो व्यक्ति अपनी वित्तीय जरूरतों को बिना किसी वित्तीय नुकसान के पूरा करने के लिए आपस में अपने देशों की मुद्रा की अदला बदली करने का समझौता करते हैं तो कहा जाता है कि इन देशों में आपस में करेंसी स्वैप का समझौता किया है.

Currency Swap

विनिमय दर की किसी भी अनिश्चित स्थिति से बचने के लिए दो व्यापारी या देश एक दूसरे के साथ करेंसी स्वैप का समझौता करते हैं.

विनिमय दर का अर्थ: विनिमय दर का अर्थ दो अलग अलग मुद्राओं की सापेक्ष कीमत है, अर्थात “ एक मुद्रा के सापेक्ष दूसरी मुद्रा का मूल्य”. वह बाजार जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं का विनिमय होता है उसे विदेशी मुद्रा बाजार कहा जाता है.

वर्ष 2018 भारत और जापान ने 75 अरब डॉलर के करेंसी स्वैप एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किये हैं जिससे कि दोनों देशों की मुद्राओं में डॉलर के सापेक्ष उतार चढ़ाव को कम किया जा सके.

इस एग्रीमेंट का मतलब यह है कि भारत 75 अरब डॉलर तक का आयात जापान से कर सकता है और उसको भुगतान भारतीय रुपयों में करने की सुविधा होगी. ऐसी ही सुविधा जापान विदेशी मुद्रा बाजार में कितना खरीदना और बेचना है विदेशी मुद्रा बाजार में कितना खरीदना और बेचना है को होगी अर्थात जापान भी इतने मूल्य की वस्तुओं का आयात भारत से येन में भुगतान करके कर सकता है.

आइये इस लेख में जानते हैं कि करेंसी स्वैप किसे कहते हैं?

करेंसी स्वैप का शाब्दिक अर्थ होता है "मुद्रा की अदला बदली". अपने अर्थ के अनुसार ही इस समझौते में दो देश, कम्पनियाँ और दो व्यक्ति आपस में अपने देशों की मुद्रा की अदला बदली कर लेते हैं ताकि अपनी अपनी वित्तीय जरूरतों को बिना किसी वित्तीय नुकसान के पूरा किया जा सके.

करेंसी स्वैप को विदेशी मुद्रा लेन-देन माना जाता है और किसी कंपनी के लिए कानूनन जरूरी नहीं है कि वह इस लेन-देन को अपनी बैलेंस शीट में दिखाए. करेंसी स्वैप एग्रीमेंट में दो देशों द्वारा एक दूसरे को दी जाने वाली ब्याज दर फिक्स्ड और फ्लोटिंग दोनों प्रकार की हो सकती है.

करेंसी स्वैप से भारतीय अर्थव्यवस्था को क्या लाभ होंगे?

1. मुद्रा भंडार में कमी रुकेगी: डॉलर को दुनिया की सबसे मजबूत और विश्वसनीय मुद्रा माना जाता है यही कारण है कि पूरे विश्व में इसकी मांग हर समय बनी रहती है और कोई भी देश डॉलर में पेमेंट को स्वीकार कर लेता है.

डॉलर की सर्वमान्य स्वीकारता के कारण जब भारत से विदेशी पूँजी बाहर जाती है या विदेशी निवेशक अपना धन वापस निकलते हैं तो वे लोग डॉलर ही मांगते हैं जिसके कारण भारत के बाजार में डॉलर की मांग बढ़ जाती है जिसके कारण उसका मूल्य भी बढ़ जाता है. ऐसी हालात में RBI को देश के विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर निकालकर मुद्रा बाजार में बेचने पड़ते हैं जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आती है.

यदि भारत का विभिन्न देशों के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट है तो भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में (डॉलर के साथ विनिमय दर में परिवर्तन होने पर) कमी बहुत कम आएगी.

2. करेंसी स्वैप का एक अन्य लाभ यह है कि यह विनिमय दर में परिवर्तन होने से पैदा हुए जोखिम को कम करता है साथ ही यह ब्याज दर के जोखिम को भी कम कर देता है. अर्थात करेंसी स्वैप समझौते से अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुद्रा की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से राहत मिलती है.

3. वित्त मंत्रायल की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि भारत और जापान के बीच हुए करेंसी स्वैप समझौते से भारत के कैपिटल मार्केट और विदेशी विनिमय को स्थिरता मिलेगी. इस समझौते के बाद से भारत जरूरत पड़ने पर 75 अरब डॉलर की पूंजी का इस्तेमाल कर सकता है.

4. जिस देश के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट होता है संबंधित देश सस्ते ब्याज पर कर्ज ले सकता है. इस विदेशी मुद्रा बाजार में कितना खरीदना और बेचना है दौरान इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उस वक्त संबंधित देश की करेंसी का मूल्य क्या है या दोनों देशों के बीच की मुद्राओं के बीच की विनिमय दर क्या है.

आइये करेंसी स्वैप एग्रीमेंट को एक उदाहरण की सहायता से समझते हैं;

मान लो कि भारत में व्यापार करने करने वाले व्यापारी रमेश को 10 साल के लिए 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर की जरूरत है. रमेश किसी अमेरिकी बैंक से 1 मिलियन डॉलर का लोन लेने का प्लान बनाता है लेकिन फिर उसे याद आता है कि यदि उसने आज की विनिमय दर ($1 = रु.70) पर 7 करोड़ का लोन ले लिया और बाद में रुपये की विनिमय दर में गिरावट आ जाती है और यह विनिमय दर गिरकर $1 = रु.100 पर आ जाती है तो रमेश को 10 साल बाद समझौते के पूरा होने पर 7 करोड़ के लोन के लिए 10 करोड़ रूपये चुकाने होंगे. इस प्रकार रमेश को लोन लेने पर बाजार में उतार चढ़ाव के कारण 3 करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है.

लेकिन तभी रमेश को एक फर्म से पता चलता है कि अमेरिकी व्यापारी अलेक्स को 7 करोड़ रुपयों की जरूरत है. अब रमेश और अलेक्स दोनों करेंसी स्वैप का एग्रीमेंट करते हैं जिसके तहत रमेश 7 करोड़ रुपये अलेक्स को दे देता है और अलेक्स 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर रमेश को. दोनों के द्वारा समझौते की राशि का मूल्य $1 =रु.70 की विनिमय दर के हिसाब से बराबर है.

अब रमेश, अलेक्स को अमेरिका के बाजार में प्रचलित ब्याज दर (मान लो 3%) की दर से 1 मिलियन डॉलर पर ब्याज का 10 साल तक भुगतान करेगा और अलेक्स, रमेश को भारत के बाजार में प्रचलित ब्याज दर (मान लो 6%) के हिसाब से 7 करोड़ रुपयों के लिए ब्याज देगा.

समझौते की परिपक्वता अवधि (date of maturity) पर रमेश, अलेक्स को 1 मिलियन डॉलर लौटा देगा और अलेक्स भी रमेश को 7 करोड़ रुपये लौटा देगा. इस प्रकार के आदान-प्रदान के लिए किया गया समझौता ही करेंसी स्वैप कहलाता है.

इस प्रकार करेंसी स्वैप की सहायता से रमेश और अलेक्स दोनों ने विनिमय दर के उतार चढ़ाव की अनिश्चितता से बचकर अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा कर लिया है.

समय की जरुरत को देखते हुए भारत ऐसी ही समझौते अन्य देशों के साथ करने की तैयारी कर रहा है. भारत, कच्चा टेल खरीदने के लिए ईरान के साथ ऐसा ही समझौता करने की प्रोसेस में है. अगर भारत और ईरान के बीच यह समझौता हो जाता है तो भारत हर साल 8.5 अरब डॉलर बचा सकता है.

उम्मीद है कि ऊपर दिए गए विश्लेषण और उदाहरण की सहायता से आप समझ गए होंगे कि करेंसी स्वैप किसे कहते हैं और इससे किसी अर्थव्यवस्था को क्या फायदे होते हैं.

निफ्टी फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस से कैसे कमाएं मुनाफा?

हाल में हमने आपको फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के बारे में बताया था. अब हम आपको निफ्टी फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के बारे में बता रहे हैं.

फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस

अगर कारोबार के बारे में आपका ठोस नजरिया है और आप जोखिम ले सकते हैं तो थोड़ी कीमत चुका कर आप निफ्टी ऑप्शंस और फ्यूचर्स पर दांव खेल सकते हैं.

कॉल ऑप्शन इस खरीदने वाले को तय अवधि के दौरान पहले से तय कीमत पर निफ्टी खरीदने का अधिकार देता है. बायर को चाहे तो अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है. वह चाहे तो अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं भी कर सकता है. इसी तरह पुट ऑप्शन इसे खरीदने वाले को इंडेक्स बेचने का अधिकार देता है. इंडेक्स फ्यूचर्स के सौदों का निपटारा कैश में होता है.

प्रश्न: निफ्टी फ्यूचर्स एंड ऑप्शन सौदा कैसे काम करता है?
उत्तर: इसे उदाहरण के साथ समझते हैं. मान लीजिए ट्रेडर ए को लगता है कि निफ्टी 10,7000 के स्तर तक चढ़ेगा. इसके लिए वह कुछ मार्जिन चुकाता है, जो कॉन्ट्रैक्स की कुल लागत का छोटा हिस्सा होता है. वह जिससे सौदा करता है, वह ट्रेडर बी है, जो इस स्तर पर निफ्टी बेचता है.

यदि निफ्टी 10,8000 के स्तर तक चढ़ जाता है, तो ए के पास अधिकार होगा कि वह अपने बी से 10,700 के भाव पर ही निफ्टी खरीद सके और उसके मौजूदा भाव यानी 10,800 के स्तर पर बेच सके. इस तरह उसे 7,500 रुपये (75x100) का फायदा होगा.

इसी तरह यदि निफ्टी फ्यूचर्स 10,600 तक लुढ़क जाता हैं, तो बी निफ्टी फ्यूचर्स को ए को 10,700 के स्तर पर ही बेचेगा. ऐसे में ए को 100 रुपये प्रति शेयर का नुकसान होगा.

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ए को 10,700 के स्तर पर कॉल ऑप्शन खरीदने के लिए 200 रुपये का प्रीमियम (शुक्रवार का क्लोजिंग प्राइस) प्रति शेयर चुकाना होगा. यदि निफ्टी 100 अंक की छलांग लगाकर एक्सपाइरी से पहले 10,800 तक पहुंच जाता है तो ऑप्शन की वैल्यू में 100 रुपये इजाफा होगा.

ऐसे सौदों में विक्रेता का पैसा ज्यादा फंसा हुआ माना जाता है. हालांकि, कॉल खरीदार को भी घाटा हो सकता है, यदि निफ्टी उसकी उम्मीद से अधिक लुढ़क जाए. यदि स्टॉक एक्सचेंज की कोई खास शर्त या नियम न हो, तो इन सौदों का सेटलमेंट नकद में होता है.

प्रश्न: फ्यूचर्स और ऑप्शंस में किसे खरीदने में ज्यादा फायदा है?
उत्तर: दोनों ही प्रकार के सौदों के अपने लाभ और हानि हैं. एक ऑप्शन विक्रेता को अधिक जोखिम और मार्जिन रखना पड़ता है, जो खरीदार द्वारा उसे मिलने वाले प्रीमियम से अधिक होता है. हालांकि, फ्यूचर सौदा खरीदने या बेचने के लिए खरीदार और विक्रेता को समान मार्जिन रखना होता है.

अमूमन यह पूरे सौदे की वैल्यू के 10 फीसदी तक होता है. एक ऑप्शन को लंबे समय तक अपने पास रखना वैल्यू कम कर देता है.फ्यूचर्स के साथ ऐसा नहीं होता क्योंकि उन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है.

हालांकि, फ्यूचर्स में फायदा और नुकसान असीमित हो सकता है. ऑप्शन के मामले में (खरीदार के लिए) घाटे सिर्फ चुकाए गए प्रीमियम तक ही सीमित होता है, जबकि मुनाफा काफी अधिक हो सकता है.

प्रश्न: इन सौदों का कारोबार कहां और कैसे होता है?
उत्तर: इन सौदों के के लिए आप ब्रोकर के साथ ट्रेडिंग खाता खुलवा सकते हैं. कैश सेटलमेंट के चलते इन सौदों के लिए डीमैट जरूरी नहीं होगा. इन सौदों का कारोबार बीएसई और एनएसई पर होता है.एनएसई पर इन सौदों की लिक्विडिटी अधिक होती है.

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एक डॉलर की कीमत 80 रुपये पर पहुंची, जानें- क्यों कमजोर होता जा रहा है रुपया, अभी और कितनी गिरावट बाकी?

Rupee Vs Dollar: एक डॉलर की कीमत 80 रुपये पर पहुंच गई है. संसद में सवालों के जवाब में केंद्र सरकार की तरफ से जवाब दिया गया है कि 2014 के बाद से डॉलर के मुकाबले रुपये में अभी तक 25 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है.

Updated: July 19, 2022 12:44 PM IST

Dollar Vs Rupee

Rupee Vs Dollar: मंगलवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण विनिमय दर के स्तर डॉलर के मुकाबले 80 रुपये के स्तर से नीचे चला गया. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, रुपया घटकर 80.06 प्रति डॉलर पर आ गया.

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रुपया विनिमय दर क्या है?

अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये की विनिमय दर अनिवार्य रूप से एक अमेरिकी डॉलर को खरीदने के लिए आवश्यक रुपये की संख्या है. यह न केवल अमेरिकी सामान खरीदने के लिए बल्कि अन्य वस्तुओं और सेवाओं (जैसे कच्चा तेल) की पूरी मेजबानी के लिए एक महत्वपूर्ण मीट्रिक है, जिसके लिए भारतीय नागरिकों और कंपनियों को डॉलर की आवश्यकता होती है.

जब रुपये का अवमूल्यन होता है, तो भारत के बाहर से कुछ खरीदना (आयात करना) महंगा हो जाता है. इसी तर्क से, यदि कोई शेष विश्व (विशेषकर अमेरिका) को माल और सेवाओं को बेचने (निर्यात) करने की कोशिश कर रहा है, तो गिरता हुआ रुपया भारत के उत्पादों को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है, क्योंकि रुपये का अवमूल्य विदेशियों के लिए भारतीय उत्पादों को खरीदना सस्ता बनाता है.

डॉलर के मुकाबले रुपया क्यों कमजोर हो रहा है?

सीधे शब्दों में कहें तो डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है, क्योंकि बाजार में रुपये की तुलना में डॉलर की मांग ज्यादा है. रुपये की तुलना में डॉलर की बढ़ी हुई मांग, दो कारकों के कारण बढ़ रही है.

पहला यह कि भारतीय जितना निर्यात करते हैं, उससे अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करते हैं. इसे ही करेंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) कहा जाता है. जब किसी देश के पास यह होता है, तो इसका तात्पर्य है कि जो आ रहा है उससे अधिक विदेशी मुद्रा (विशेषकर डॉलर) भारत से बाहर निकल रही है.

2022 की शुरुआत के बाद से, जैसा कि यूक्रेन में युद्ध के मद्देनजर कच्चे तेल और अन्य कमोडिटीज की कीमतों में बढ़ोतरी होने लगी है, जिसकी वजह से भारत का सीएडी तेजी से बढ़ा है. इसने रुपये में अवमूल्यन यानी डॉलर के मुकाबले मूल्य कम करने का दबाव डाला है. देश के बाहर से सामान आयात करने के लिए भारतीय ज्यादा डॉलर की मांग कर रहे हैं.

दूसरा, भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश में गिरावट दर्ज की गयी है. ऐतिहासिक रूप से, भारत के साथ-साथ अधिकांश विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में CAD की प्रवृत्ति होती है. लेकिन भारत के मामले में, यह घाटा देश में निवेश करने के लिए जल्दबाजी करने वाले विदेशी निवेशकों द्वारा पूरा नहीं किया गया था; इसे कैपिटल अकाउंट सरप्लस भी कहा जाता है. इस अधिशेष ने अरबों डॉलर लाए और यह सुनिश्चित किया कि रुपये (डॉलर के सापेक्ष) की मांग मजबूत बनी रहे.

लेकिन 2022 की शुरुआत के बाद से, अधिक से अधिक विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि भारत की तुलना में अमेरिका में ब्याज दरें बहुत तेजी से बढ़ रही हैं. अमेरिका विदेशी मुद्रा बाजार में कितना खरीदना और बेचना है में ऐतिहासिक रूप से उच्च मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक आक्रामक रूप से ब्याज दरों में वृद्धि कर रहा है. निवेश में इस गिरावट ने भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करने के इच्छुक निवेशकों के बीच भारतीय रुपये की मांग में तेजी से कमी की है.

इन दोनों प्रवृत्तियों का परिणाम यह है कि डॉलर के सापेक्ष रुपये की मांग में तेजी से गिरावट दर्ज की गयी है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है.

क्या डॉलर के मुकाबले केवल रुपये में ही आई है गिरावट?

यूरो और जापानी येन समेत सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर मजबूत हो रहा है. दरअसल, यूरो जैसी कई मुद्राओं के मुकाबले रुपये में तेजी आयी है.

क्या रुपया सुरक्षित क्षेत्र में है?

रुपये की विनिमय दर को “प्रबंधित” करने में आरबीआई की भूमिका को समझना महत्वपूर्ण है. यदि विनिमय दर पूरी तरह से बाजार द्वारा निर्धारित की जाती है, तो इसमें तेजी से उतार-चढ़ाव होता है – जब रुपया मजबूत होता है और रुपये का अवमूल्यन होता है.

लेकिन आरबीआई रुपये की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देता है. यह गिरावट को कम करने या वृद्धि को सीमित करने के लिए हस्तक्षेप करता है. यह बाजार में डॉलर बेचकर गिरावट को रोकने की कोशिश करता है. यह एक ऐसा कदम है जो डॉलर की तुलना में रुपये की मांग के बीच के अंतर को कम करता है. जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आती है. जब आरबीआई रुपये को मजबूत होने से रोकना चाहता है तो वह बाजार से अतिरिक्त डॉलर निकाल लेता है, जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होती है.

एक डॉलर की कीमत 80 रुपये से ज्यादा होने के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या रुपये में और गिरावट आनी बाकी है? जानकारों का मानना है कि 80 रुपये का स्तर एक मनोवैज्ञानिक स्तर था. अब इससे नीचे आने के बाद यह 82 डॉलर तक पहुंच सकता है.

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क्या होगा अगर बाजार ने फेड को गलत समझा है?

आगामी फेड मीटिंग निवेशकों को बात करने के लिए बहुत कुछ देने की संभावना है। जे पॉवेल दिसंबर एफओएमसी की बैठक में 50 बीपीएस की दर में संभावित गिरावट के लिए पहले ही बाजार की उम्मीदों को पूरा कर चुके हैं। हालांकि, उस डाउनशिफ्ट के बाद, ध्यान दर वृद्धि की गति से अपने अंतिम गंतव्य पर स्थानांतरित हो जाएगा।

कम से कम अभी के लिए, फेड फ़ंड फ़्यूचर्स फेड के साथ लगभग 4.9% की दरों को आगे बढ़ाते हुए संतुष्ट लगता है। यह पिछली फेड बैठक में फ्यूचर्स की अपेक्षा से काफी कम है। 2 नवंबर को वायदा बाजार में 5.07% की दर देखी गई। उसके शीर्ष पर, वायदा अब तेज और तेज दर में कटौती में मूल्य निर्धारण कर रहा है।

Fed Funds Futures Now and After Last FOMC Meeting

अलग राय

दर वृद्धि के एक वर्ष और आगे के मार्गदर्शन के एक वर्ष के बाद, कोई सोचेगा कि फेड और बाजार उस बिंदु पर होंगे जहां हर कोई सहमत होगा। बात वह नहीं है। पॉवेल और अन्य फेड बोर्ड के सदस्यों ने विशेष रूप से चर्चा की है कि वे सितंबर एफओएमसी बैठक में संकेतित दरों से अधिक जा रहे हैं। सितंबर में अनुमान तब 4.6% की चरम टर्मिनल दर की मांग कर रहे थे। अब, बात 5% से 5.25% तक उच्च हो गई है।

इसके बजाय, फेड फंड्स फ्यूचर्स मार्केट मई तक 4.92% की चरम टर्मिनल दर में मूल्य निर्धारण कर रहा है और दरों में कटौती में मूल्य निर्धारण जो फेड फंड्स दर को दिसंबर तक 4.55% तक वापस लाता है। इसका तात्पर्य यह है कि बाजार में 50 से 75 बीपीएस तक गलत मूल्य निर्धारण हो सकता है, जो सार्थक है क्योंकि 2-वर्ष ट्रेजरी की दर शायद बहुत कम है।

एक संभावित गलत मूल्य निर्धारण

इतना ही नहीं, बल्कि इसका मतलब यह भी हो सकता है कि पूरे बाजार में इक्विटी से लेकर डॉलर तक का गलत मूल्य लगाया गया है, क्योंकि बाजार ने फेड की सख्ती पर ध्यान केंद्रित किया है और जल्द ही दरों में कटौती करने की जरूरत है। इसका संभावित अर्थ यह है कि हाल ही में डॉलर का कमजोर होना बहुत अधिक रहा है, और इक्विटी बाजार में हाल की रैली बहुत अधिक रही है।

यह भविष्य में दरों में वृद्धि की गति पर और अधिक जोर नहीं देगा, लेकिन जहां फेड टर्मिनल दर बनाम बाजार को देखता है। फेड की बैठक के बाद से सब कुछ इस बात पर टिका होने की संभावना है कि पॉवेल बाजार को आश्वस्त करने के साथ कितना अच्छा काम कर सकता है कि दरें 5% तक बढ़ जाएंगी और संभावित रूप से 2023 तक सभी के लिए बनी रहेंगी। यदि वह ऐसा कर सकता है, तो शायद एक है वर्तमान में बाजार में बहुत बड़ी गड़बड़ी है, जो बताती है कि दरें अधिक होती हैं, डॉलर मजबूत होता है, और वित्तीय स्थिति कड़ी होती है।

प्रकटीकरण: ब्लूमबर्ग फाइनेंस एलपी की अनुमति से उपयोग किए गए चार्ट। इस रिपोर्ट में केवल सूचनात्मक और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली स्वतंत्र टिप्पणी शामिल है। माइकल क्रेमर Mott Capital Management के सदस्य और निवेश सलाहकार प्रतिनिधि हैं। श्री क्रेमर इस कंपनी से संबद्ध नहीं हैं और इस स्टॉक को जारी करने वाली किसी भी संबंधित कंपनी के बोर्ड में काम नहीं करते हैं। इस विश्लेषण या बाजार रिपोर्ट में माइकल क्रेमर द्वारा प्रस्तुत सभी राय और विश्लेषण केवल माइकल क्रेमर के विचार हैं। पाठकों को किसी विशेष सुरक्षा को खरीदने या बेचने या किसी विशेष रणनीति का पालन करने के लिए माइकल क्रेमर द्वारा व्यक्त की गई किसी भी राय, दृष्टिकोण या भविष्यवाणी को एक विशिष्ट अनुरोध या सिफारिश के रूप में नहीं लेना चाहिए। माइकल क्रेमर का विश्लेषण सूचना और स्वतंत्र अनुसंधान पर आधारित है जिसे वह विश्वसनीय मानते हैं, लेकिन न तो माइकल क्रेमर और न ही मोट कैपिटल मैनेजमेंट इसकी पूर्णता या सटीकता की गारंटी देता है, और इस पर इस तरह भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। माइकल क्रेमर अपने विश्लेषणों में प्रस्तुत किसी भी जानकारी को अद्यतन या सही करने के लिए बाध्य नहीं हैं। श्री क्रेमर के बयान, मार्गदर्शन और राय बिना सूचना के परिवर्तन के अधीन हैं। पूर्व प्रदर्शन भविष्य के परिणाम का संकेत नहीं है। सूचकांक का पिछला प्रदर्शन भविष्य के परिणामों का संकेत या गारंटी नहीं है। इंडेक्स में सीधे निवेश करना संभव नहीं है। एक इंडेक्स द्वारा दर्शाए गए एसेट क्लास का एक्सपोजर उस इंडेक्स के आधार पर निवेश योग्य उपकरणों के माध्यम से उपलब्ध हो सकता है। न तो माइकल क्रेमर और न ही मोट कैपिटल मैनेजमेंट किसी विशिष्ट परिणाम या लाभ की गारंटी देता है। इस विश्लेषण में प्रस्तुत किसी भी रणनीति या निवेश टिप्पणी का पालन करने में आपको नुकसान का वास्तविक जोखिम पता होना चाहिए। चर्चा की गई रणनीतियाँ या निवेश मूल्य या मूल्य में उतार-चढ़ाव कर सकते हैं। इस विश्लेषण में उल्लिखित निवेश या रणनीतियाँ आपके लिए उपयुक्त नहीं हो सकती हैं। यह सामग्री आपके विशेष निवेश उद्देश्यों, वित्तीय स्थिति, या जरूरतों पर विचार नहीं करती है और यह आपके लिए उपयुक्त सिफारिश के रूप में अभिप्रेत नहीं है। आपको इस विश्लेषण में निवेश या रणनीतियों के संबंध में एक स्वतंत्र निर्णय लेना चाहिए। अनुरोध पर, सलाहकार पिछले बारह महीनों के दौरान की गई सभी सिफारिशों की एक सूची प्रदान करेगा। इस विश्लेषण में जानकारी पर कार्रवाई करने से पहले, आपको विचार करना चाहिए कि क्या यह आपकी परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है और किसी भी निवेश की उपयुक्तता निर्धारित करने के लिए अपने स्वयं के वित्तीय या निवेश सलाहकार से सलाह लेने पर दृढ़ता से विचार करें। माइकल क्रेमर और मोट कैपिटल को इस लेख के लिए मुआवजा मिला।

मप्र: ईमानदार अफसर के BANK लॉकर ने उगला 3 किलो गोल्ड, विदेशी मुद्रा | MP NEWS

भोपाल। खुद को ईमानदार बताने वाले मध्यप्रदेश राज्य प्रशासनिक सेवा (MP SAS) के अधिकारी एवं रिटायर्ड अपर कलेक्टर आनंद जैन (RETIRED UPPER COLLECTOR ANAND JAIN) के यहां लोकायुक्त (LOKAYUKTA POLICE RAID) छापे में पुलिस को संपत्तियों की डीटेल्स हाथ लगीं थीं। अब उनके बैंक लॉकर्स को खंगाला गया तो उसमें (BANK LOCKERS) से करीब 3 किलो सोना (GOLD) और 5 लाख नकद मिले। जैन की बेटी सौम्या भोपाल साइबर सेल में बतौर DSP पदस्थ है। उसके नाम पर भी एक लॉकर में सोने के जेवर व नकदी मिली। लॉकरों में सोने के बिस्किट और सिक्कों के अलावा विदेशी मुद्रा भी मिली है।

लोकायुक्त पुलिस का मानना है कि इसमें से काफी सारी काली कमाई है। इससे पहले लोकायुक्त पुलिस को जैन के घर से 5 मकान, 22 BANK ACCOUNT, 16 FD, खजराना में 15 करोड़ की डेढ़ एकड़ जमीन, 3 बैंक लॉकर के कागज मिले हैं। अब लोकायुक्त पुलिस यह पता लगा रही है कि इसमें (PROPERTY) से कालाधन कितना है और आनंद जैन की कमाई (REAL INCOME) कितनी।

लोकायुक्त पुलिस ने रविवार सुबह साढ़े छह बजे रिटायर्ड अपर कलेक्टर आनंद जैन के दो घरों पर एक साथ छापा मारा। इतनी संपत्ति उजागर होने के बाद जैन ने कहा था कि मैं ईमानदार अफसर रहा हूं। जिसने मेरी शिकायत की उसे भगवान सजा देंगे। छापे की कार्रवाई इंदौर की रेडियो कॉलोनी में बने बंगले और टेलीफोन नगर स्थित बंगले पर हुई।

लोकायुक्त पुलिस को बायपास रोड पर बेस्ट प्राइस के पास जैन की डेढ़ एकड़ जमीन के दस्तावेज मिले हैं। गाइड लाइन के हिसाब से ही इसकी कीमत 15 करोड़ है। एक और प्लाट, साढ़े चार लाख रुपए नकद और 16 एफडी मिलीं। सभी 1 से 5 लाख तक की।

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